हमें अच्छे नहीं,
सच्चे मित्र चाहिए !
सच्चे मित्र
आपके
प्रखर आलोचक होते हैं,
भीड़वाले मित्र
चाटुकार,
चापलूस होते हैं !
जो आपके
आगे-पीछे करेंगे,
वो रुतबे
कायम रहने तक ही
कद्र करेंगे !
रुतबा गायब,
मित्रता गायब?
तभी तो
कोई भी
सच्चे मित्र
अथवा
साहित्यकार नहीं,
अपितु
‘साहित्यसाधक’
किसी देश के
राष्ट्राध्यक्ष से भी
बड़े होते हैं !