कहानी रूम हीटर
शीत लहरी से पूरा क्षेत्र कांप रहा था । ठंड ने समस्त प्राणियों में अपना दबदबा कायम कर लिया था । किसान बड़ी मुश्किल से खलिहान तक पहुंच रहे थे और मजदूर हिलते डुलते काम पर जाने को मजबूर थे । जिस पर नजरें उठती वही कपड़ों में लिपटे नजर आ रहे थे । शरद बाबू भी जवानों की तरह बदन पर जैकेट डाले ऑफिस के लिए निकल पड़े थे । ऑफिस तो पहुंच गया पर लगा मन उसने घर में ही छोड़ आया है ।
उस दिन पहली बार ठंड ने उसे ठिठुरा दिया था, कहिए तो-डरा दिया था । बढ़ती उम्र का असर था या पूस की ठंड का प्रभाव! शरीर एक दम से उनका कांप उठा था । लगा ठंडी हवा हडि्डयों के बीच से पूरे शरीर के रोम रोम में समाती जा रही है । आफिस में बैठे बैठे, उसके कांपते मन ने पहली बार ” रूम हीटर ” का नाम लिया, जैसे मरता हुआ आदमी ” राम ” का नाम लेता है और चोर घुसखोर थानेदार का ।
तब जीवन में पहली बार शरद बाबू रूम हीटर लेने बाजार पहुंचे थे । तभी एक साथी ने रूम हीटर पर उसे एक लम्बा सा लेक्चर दे डाला-” जिस घर में गरम मिजाज की बीवी हो,उस घर में कभी रूम हीटर की जरूरत नहीं पड़ती है, वो घर सदा ही गरम रहता है ..।”
” फिर भी कोई लेना चाहे तो..?” दूसरे साथी ने टोका था ।
” लिख लो, आग लगने की संभावना बनी रहेगी…!”
” जिसके घर में पत्नी हो, उसे रूम हीटर की क्या जरूरत..?” तीसरे साथी का तीर चला ।
” इसका जवाब तो शरद बाबू ही दे सकते है…!”
शरद बाबू कोई जवाब नहीं दे सके । केवल खोखली हंसी हंस दिये थे । कितनी पेच है जीवन में ! हर पेच में कितने जीवन उलझे पड़े हुए हैं । एक ढूंढो लाखों करोड़ों शरद बाबू उलझे मिलेगें जीवन की इस पहेली में ।
शरद बाबू अभी तक खुद को बड़ा गबरू जवान समझते आ रहे थे। आज पहली बार उसे अर्ध बूढ़ा होने का एहसास हो रहा था । सोच रहे थे, उन लोगों के बारे में जब दुनिया में रूम हीटर नहीं हुआ करता था तब लोग ठंड का मुकाबला कैसे करते होंगे ? आज उसे मां की कही एक बात बहुत याद आ रही थी । ऐसे ही किसी बात पर उसकी मां ने कहा था-” आदमी अंदर से मजबूत हो, तो वो ठंड -गरमी -बरसात सभी का मुकाबला कर सकता है .. पर कमजोर आदमी बरसात के पानी में भी ठिठुर कर मर जायेगा..!”
मतलब कि अंदर से आदमी कमजोर हो तो हाथी का खाल भी ओढ़ ले तब भी उसे ठंड से नहीं बचा सकता है, ऊर्जा अंदर से पैदा होती है बाहर से तो सिर्फ तड़क भड़क दिखाई देती है । कमोवेश शरद बाबू का यही हाल था । खैर जो हो सो हो, साथी की पसंद से उसने एक रूम हीटर लिये और घर आ गये । उसके मन को तसल्ली हो रही थी कि अब वह ठंड से मुकाबला कर सकता है । लेकिन रास्ते भर वह यही सोचता आ रहा था-” जो आदमी आज तक पत्नी का मुकाबला नहीं कर सका,वो रूम हीटर से ठंड का मुकाबला करने की सोच रहा है -” शरद बाबू खुद पर हंस पड़े थे ।
उसकी पत्नी को पता चला तो रूम हीटर से ज्यादा वो गरम लगी -” यह रूम हीटर -पिटर तुम अपने रूम में ही रखना, मुझे इसकी जरूरत नहीं है…!”। उसने पति से सख्त लहजे में कही थी ।
” तुम तो खुद एक रूम हीटर हो, तुम्हें इसकी क्या जरूरत..?..यह तो मै अपने लिए लाया हूं ” शरद बाबू ने धीरे से कहा था ।
” क्या कहा…?” पत्नी पलटी थी
” कुछ नहीं .. कुछ नहीं .!” वह कहते रह गये थे ।
जब भी पत्नी उसके सामने आती या खुद वह पत्नी के सामने जाता समय जैसा भी होता, चाहे जिस रूप में भी- पत्नी सदैव एक रूम हीटर की तरह नजर आती और उसकी ताव में शरद बाबू का मन और तन दोनों झुलसते रहता । कभी चीखना चाहे-चीख न सके, रोना चाहे – रो न सके । उसकी चाहत की गरमाहट को पाने के लिए शरद बाबू का दिल हमेशा तड़पते रहता लेकिन पत्नी के आगे उसके दिल की आवाज कभी मंदिर का लाउडस्पीकर न बन सका । कैदी की तरह सदा दबे-दबे रहता । वहीं दाम्पत्य जीवन के तीस साल बीत जाने के बाद भी शकुंतला देवी गरम तावे की तरह तपी तपी सी रहती थी । और शरद बाबू की जरा जरा सी बात पर पानी की तरह छन छना उठती थी ।
रात के आठ सवा आठ का वक्त था । घर में अपने रूम में रूम हीटर लिए शरद बाबू खड़े सोच में डूबे हुए थे । रूम हीटर पर कही एक दोस्त की बात बार बार कानों में गूंज रही थी -” जिसके घर में बीवी हो उसे रूम हीटर की क्या जरूरत । साथ दोनों सो जाएं । रूम हीटर की जरूरत ही नहीं पड़ेगी..!”
” हर किसी की बीवी रूम हीटर नहीं होती, कोई कोई गरम चूल्हा भी होती है और चूल्हा को साथ लेकर सोया नहीं जाता ..!’ उसने कहना चाहा था पर कह नहीं सका । उन्हें कैसे बताता कि मेरी बीवी रूम हीटर नहीं-गैस सिलेंडर है..जलती कोयला का चूल्हा है..कोयले से चलने वाली रेल इंजन है …!”
सच बात तो यह थी कि शरद बाबू और उसकी पत्नी शकुंतला देवी ये दोनों पति पत्नी के रूप में कभी साथ सोये ही नहीं। शादी के बाद से ही शकुंतला देवी ने दोनों के बीच एक लक्ष्मण रेखा खींच दी थी, न जाने क्यों ? आज तक शरद बाबू को पता न चल सका था । किसी से सुना था शकुंतला देवी शरद बाबू के साथ शादी के पक्ष में नहीं थी । शादी के बाद से ही उसे शरद बाबू से चिढ़ थी । सो जब उसे पति नाम के प्राणी की जरूरत महसूस होती थी तब पेटीकोट की डोर खींच देती,लक्ष्मण रेखा कुछ समय के लिए मिट जाता । और शरद बाबू रिमोट की तरह खींचे चले आते थे । जरूरत पुरी करते, फिर पेटीकोट की डोर बंध जाती और लक्ष्मण रेखा खींच जाती । इसी लक्ष्मण रेखा को मिटाने के लिए अब तक किए गए शरद बाबू के सारे प्रयास बेकार साबित हुए थे । रूम हीटर उसका एक आखरी प्रयास था ।
बाहर ठंड का कडा पहरा था । कुत्तों ने जोर जोर से भौंकने शुरू कर दिये थे । शायद ठंड से बचने का उनके पास यही एक मात्र विकल्प था । इस मामले में गली के कुते और शरद बाबू में बहुत ज्यादा फर्क नहीं था । तो क्या पत्नी को साथ सुलाने के लिए कुत्तों की भांति शरद बाबू को भी रोना शुरू कर देना चाहिए ? या फिर पत्नी के बिस्तर पर खुद जाकर उसे सो जाना चाहिए ! बड़ी विडंबना वाली बात थी । ऐसी बात नहीं थी की शरद बाबू ने इसके लिए कोशिश नहीं की थी । उस रात की पत्नी की फटकार शरद बाबू आज तक नहीं भूलें है । वो भी एक शरद रात थी । बाहर घना अंधेरा था । शरद बाबू अपने कमरे में बैठे बैठे उंघ रहे थे । जाने क्या सूझी । अचानक वह कमरे से बाहर निकले और सीधे पत्नी के बिस्तर में जा घुसे । मालूम हुआ पत्नी बिन कपड़ों में है । देह स्पर्श से ही शकुंतला देवी उछल पड़ी थी । देखा शरद उसके बिस्तर पर लेटा हुआ है । वह नागीन की तरह फुफकार उठी थी-” तुम्हें मेरे बिस्तर पर आने की हिम्मत कैसे हुई ? मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरे शरीर तो क्या मेरे बिस्तर पर दुबारा आने की सोचना भी नहीं ..!”
” मैं तुम्हारा बिहाता पति हूं । कोई पराया नहीं…!” शरद बाबू अडे थे ।
” पति गया पोदिना लाने..चल निकल..जो मिलता है वो भी बंद हो जायेगा, फिर हाट बाजार मुंह मारते फिरना…!”
शरद बाबू बड़े बेआबरू होकर निकल पड़े थे, उस रात कमरे से । तब से बिन बुलाए कभी उसने पत्नी के कमरे में कदम नहीं रखा था ।
गली में कुत्तों का भौंकना जारी था । और घर में शरद बाबू के अंदर भी एक संघर्ष जारी था । रूम हीटर का क्या करूं-क्या न करूं का संघर्ष ! रात के दस बज चुका था ।
दस से ग्यारह बज गया ! और फिर बारह भी बज गया । गली के कुत्तों का भौंकना बंद हो गया । लगातार भौंकने से शायद उन्हें गर्मी का एहसास हो गया था और वे चुप हो गये पर कैदी की तरह शरद बाबू अब भी स्वीच बॉड के सामने खड़े थे और पत्नी बगल के कमरे में रजाई ओढ़ बकरी बेच कर सो रही हो ऐसा प्रतीत होता था । मालूम होता उसे इस बात से कोई लेना देना नहीं था कि उसका पति इस वक्त किस हालत में है , जाग रहा है या सोया हुआ है । ऐसी निर्मोही पत्नी शायद ही संसार में कोई दूसरी हो, ऐसा आप सोच सकते हैं । लेकिन मैं ऐसा नहीं सोचता । हर औरत के लिए उसका पति राशनकार्ड की तरह होता है और उनके संबंधों का सार्वजनिक मुहर लगा होता है । जैसा कि हर औरत में एक दिल भी होता है, जैसे बकरी का भी होता है जो कभी न कभी धड़कता है ! जब उनकी यौन भूख जाग उठती है,तब बकरी-बकरे के लिए मिमिया ने लगती है । यही मनोदशा हर औरतों में पाई जाती है, बस सामने वाला पति एक मर्द होना चाहिए और,तब उनमे चाहत की ज्वार-भाटा उमड़ पडती है और वह मिलन की आग में तडप उठती है ।
खड़े खड़े शरद बाबू का दर्द बढ़ने लगा था । सोचता भी जा रहा था कि रूम हीटर का प्लग डाल स्वीच ऑन कर दें और रजाई ओढ़ खुद भी सो जाए । इतने सालों अकेले सोया है तो आगे भी सो लेगा । ऐसा कई बार सोचा भी उसने परन्तु न जाने आज उसका मन किस ज़िद पर अड़ा हुआ था कि पत्नी को अपने बिस्तर पर लाना है तो लाना है बस ! तभी बिजली चली गई । इनवर्टर चालू हो गया । शरद बाबू के दिमाग में भी,बिजली कौंध गई । शायद वह इसी पल का इंतज़ार कर रहे थे । और उसने रूम हीटर की तार का प्लग स्वीच बॉड में डाला और स्वीच ऑन कर दिया ..!
अगले ही पल ” घुप्प ” की आवाज के साथ घर में अंधेरा छा गया …?
शकुंतला देवी चिल्लाई-” क्या हुआ ? बिजली चली गई तो इनवर्टर का क्या हुआ….?” शरद बाबू ने कोई जवाब नहीं दिया ।
शकुंतला देवी कमरे से बाहर निकली, उसे टायलेट जाना था । अंधेरे में दो कदम आगे बढ़ी । सामने शरद बाबू खड़े थे, उनसे जा टकराई-” तुम यहां खड़े क्या कर रहे हो। इनवर्टर का क्या हुआ..?”
” शायद इनवर्टर का फ्यूज -एस सी उड गया है..!”
” सुबह मेरी धारावाहिक का क्या होगा…?”
” यहां मेरा खुद का जीवन एक धारावाहिक बन चुका है वो किसी को नहीं दिखता ..!” शरद बाबू ने जोर से
कहा और अपने बिस्तर में जा घुसे ।
” अब मैं अकेले कैसे सोऊंगी.. अंधेरे से मुझे बहुत डर लगता है… अंधेरे में छिपकलियां बिस्तर पर दौड़ने लगती हैं..!” शकुंतला देवी खुद ब खुद बड़बड़ाने लगी थी । पहली बार उसके अंतर्मन को पति की बातों ने झकझोर दिया था-” यहां खुद का जीवन एक धारावाहिक बन चुका है…..!”
सुबह शरद बाबू को जल्द उठने की आदत थी। आज देर तक सोते रहे । उधर कई सालों बाद शकुंतला देवी ने आज रसोई में कदम रखी थी । गैस जला कर पहले उसने चाय बनायी फिर एक में दाल और दूसरे चूल्हे पर भात चढ़ा दी। पहले यह काम भी शरद बाबू के जिम्मे था ।
दो कप चाय लेकर वह अंदर कमरे में गई और जीवन में पहली बार आवाज दी-” उठो, चाय पी लो..देर रात तक जागे हो, ..मूड फ्रेश हो जायेगा…!”
शरद बाबू के कानों को विश्वास नहीं हो पा रहा था !
यह भोर का सपना था या हकीकत !
— श्यामल बिहारी महतो