हमने तुम से जनाब पूछा है।
देखते क्या हो ख़्वाब पूछा है।।
आज वो आए मेरी महफ़िल में।
बढ़ के दूँ क्या गुलाब पूछा है।।
जब से रहते हो मेरे दिल में तुम ।
ज़ीस्त का हर हिसाब पूछा है।।
जिसके हर वर्क पर हूँ मैं चस्पा।
कैसी है वो किताब पूछा है।।
कब से नज़रें जमाए बैठे थे ।
कब हटेगा हिजाब पूछा है।।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)