गीतिका/ग़ज़ल

कारवां के गुजर जाने का

फ़रियाद न कर उसके बिछड़ जाने का
ज़िन्दगी नाम है खोने पाने का।

कितना धीरज है उस आसमां को
ग़म मनाता नहीं किसी टूटे तारें का।

कभी देखा है किसी बगिया के माली को
अफसोस करते बाग के उजड़ जाने का।

या कभी देखा है किसी किसान को
मातम मनाते फसल के कट जाने का।

क्या कभी देखा है छोटे बच्चे को
ग़म करते खिलौने के टूट जाने का।

या किसी राही को कभी देखा है
अफसोस करते कारवां के गुजर जाने का।

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P