कविता

अनजान अजनबी

जब भी मिला, हरे हो गए पुराने घाव
टीस भरी यादों के जल उठे हैं अलाव

कोशिश की, पर भूल नहीं पाया कभी
कितनी बार मारा मुझे, तेरी यादों ने
उम्मीद है, शायद कभी लौट आओ
जिंदा रखी हैं सांसों को, तेरे यादों ने

कितना दर्द छुपा है, मुस्कान के पीछे
लोग इसे न जान पाए, समझ पाए
तिल तिल जल रहे तेल किसने देखा
सबने देखी रौशनी , और हंस हंसाए

सोचा , कुछ कुछ हम तुम पहल करें
नए सिरे से साथ चलना आरंभ करें
भूल जाएँ सब पुराने गिले शिकवे
अजनबी बन नया सफर प्रारंभ करें

जो सोच कर मिले वो नहीं हो पाया,
कुछ तूने, कुछ मैंने अतीत खड़ा पाया
जब पाल रखा हो चेहरे से ही नफरत,
फिर अनजान अजनबी न बन पाया

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार