जीवन उत्सव
रोज सुबह सूरज निकलता है
हर शाम ढल जाता है
आज फिर बीते कल में
बदल जाता है ।
इसलिए हर रोज
कुछ हिसाब रखा करो
जिसपे खुशियों के पल
लिख सको
अपने पास ऐसी किताब
रखा करो ।।
झेलते हुए लू-घाम – शीत
अंधेरों उजालों के सीने पर
उकेरते हुए प्रगति – गीत
शिखरों पर चढ़ा करो
नित आगे बढ़ा करो ।
दुर्दम्य आकांक्षाओं का
पीछा छोड़ कर
संतोष के बिखरे टुकड़े जोड़कर
सपने गढ़ा करो
नश्वर इस संसार की
क्षणभंगुरता पढ़ा करो ।
झरते हुए फूल गिरते हुए पत्ते
वसंत के आने की
आहट होते हैं
कभी इन्हें देखकर
शोकगीत मत गाया करो
ऐसे मौसम में
वसंतोत्सव की तैयारी में
जुट जाया करो ।
निराशाओं के गहरे भंवर भी
आशाओं के दीप से
उजियाया करो
गम सारे भुलाकर
हंसा करो मुस्कुराया करो ।
बादलों संग उड़ा करो
हवाओं संग गुनगुनाया करो
एक तरफ फैंक कर सब झमेले
लुत्फ़ मेले का उठाया करो ।
सब यहीं छूट जाएगा
यह सोचकर मन समझाया करो
जीवन एक उत्सव है
इसे उत्सव की तरह मनाया करो …।।
— अशोक दर्द