कविता

सच के आईने में…

/ सच के आईने में.. /

हाँ, गंदे हैं वे
मट – मैले भरे रहते हैं
बदबू आती है
जिनके तन से
समय पर नहाते नहीं
दूसरा कपड़ा नहीं होता
तन ढंकने के लिए
नंगे – अधनंगे से
जैसे को तैसा वे
दिन – रात काटते हैं
फुटपात पर, रेल्वे स्टेशन में,
बस स्टांड पर भीख माँगते
समाज के हर कोने में
दीनता का स्वर है इनका
कड़ी धूप और बारिश को
अच्छी तरह वे जानते हैं
हाँ, वे दुबला – पतला होते हैं
पेट और पीठ एक जैसा होता है
दो जून की रोटी के लिए
नित्य तरसते रहते हैं
भूख की पीड़ा से ज्यादा
अपमान को सहनते हैं
कई नाम हैं जिनके
सवर्णों की जुबान पर
वो हीनता के सूचक हैं
लोग दूर से उन्हें
तिरस्कार के स्वर में
दुत्कार देते भगाते हैं
अस्पृश्य की संज्ञा देकर
गाँव से, नगर से
मान – सम्मान से दूर – दूर
काल की कठोरता ने
इनको कला दी है
वह सवर्णों के सुख – भोग का
औजार बन चुकी है
अपने समाज में
अलग जीवन है इनका
राज्य, देश, शासन, ओहदा
अपनी बातें नहीं
सवर्ण समाज का मानते हैं
सबके साथ
अपना चेहरा दिखाते हुए
चलने की चाह
सवर्णों की पाखंड में
हजारों साल पहले
उन्होंने गड्डे में समाया है।
—- पैड़ाला रवीन्द्र नाथ ।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), सेट, पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।