ग़ज़ल
यहाँ इमदाद जो भेजी कभी सारी नही आई
तभी तो आजतक हक़दार की बारी नही आई
सभी ने भाषणो में तो किये वादे बहुत लेकिन
मदद अब तक यहाँ सरकार सरकारी नही आई
हमारे हाले ग़ुरबत के हम अपने आप दोषी हैं
हमें ही चापलूसी और ऐयारी नही आई
उसी माहौल में रहकर हुनर कितना अलग सीखा
दग़ा करना हमें उनको वफ़ादारी नही आई
ये ताक़त सत्य की ही है कि गर्दिश के दिनों में भी
विचारों में गिरावट और लाचारी नही आई
निभाई दोस्ती जिससे बड़े दिल से निभाई है
हमें करनी किसी से मतलबी यारी नही आई
दुआएं हर कदम मेरे सफ़र में साथ थी बंसल
तभी आड़े सफ़र में कोई दुष्वारी नही आई
— सतीश बंसल