सशक्तिकरण
(अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस – 8 मार्च पर विशेष)
“कभी न चल पाने वाली सजा से मैं तो बड़ी मुसीबत में पड़ गई हूं.” हर पल चिड़िया की तरह फुदकती रहने वाली मानविका अब लाचार और बेज़ार हो गई थी.
“सोच ही आपको बड़ा बनाती है..!!
यदि गुलाब की तरह खिलना चाहते हैं,
तो काँटों के साथ तालमेल की कला सीखनी होगी.” सब यही सीख देते हैं, पर मैं कहां तक तालमेल बिठाऊं?” व्हीलचेयर के सहारे मजबूरी में सब कुछ करते हुए भी वह सोचती.
एक दिन चेल्सी की कहानी उसके सामने आ गई.
“17 वर्ष की उम्र में एक हादसे की शिकार होने के बाद डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि अब वो जिंदगीभर चल नहीं पाएंगी. चेल्सी ने व्हीलचेयर को ही अपने पैर मान लिया. चेल्सी के माता-पिता ने अपनी बेटी को जिंदगी के प्रति बुरे-से-बुरे दौर में सकारात्मक नजरिए को खोजने के बारे में कहा. माता-पिता की सलाह को चेल्सी ने चुनौती मान लिया.” मानविका में साहस का संचार होने लगा था.
“डांस का बड़ा शौक था चेल्सी को, व्हीलचेयर को ही अपने पैर मानकर उसने डांस करना शुरु किया. सबने उसका हौसला बढ़ाया. इसी हौसले का अंजाम था- दिव्यांग महिलाओं को सशक्त करने के लिए रोलैट्स व्हीलचेयर डांस टीम बनाना.” फेसबुक पर मानविका पढ़ती गई.
“फिर मिला उन्हें प्यार करने वाला. 7 वर्षों तक उन्होंने एक शख्स के साथ समय बिताया और फिर दोनों ने शादी कर ली. सच में वो बहुत लकी थी, कि उसे ऐसा पति मिला जो उसे उस हाल में ही स्वीकार करता है जिसमें वह थी.” चेल्सी के इंस्टाग्राम का कहना था.
अब अपने डांस वीडियो शेयर कर वह सबको सिखाती है कि “हारते वो हैं, जो कोशिश नहीं करते.” मानविका के मन का कैनवास भी विशाल हो गया.
मानविका अब विशाल की जीवनसंगिनी थी और उसके वर्कशॉप की शिल्प मैनेजर भी.
“दिव्यांग महिलाओं को सशक्त करने के लिए शिल्प एक सशक्त माध्यम बन सकता है.” आड़े वक्त में शिल्प की शिक्षा सशक्तिकरण के काम आ रही थी.