ग़ज़ल
बस मुनाफे के लिये जो कर रहे व्यापार हैं
उनके ही स्वामित्व में ये आज के अख़बार हैं
जो भी जी चाहे छपा लो दे के इनकी दक्षिणा
झूट सच दोनों के विज्ञापन इन्हे स्वीकार हैं
इनकी खबरे प्रार्थमिकता लूट हत्या अपहरण
सुर्खियों में देश द्रोही बन रहे किरदार हैं
ये शहीदों की खबर छापेंगे कोने में कहीँ
सबसे पहले पृष्ठ के तो भृष्ट ही हक़दार हैं
महंगे तोहफे, रूप, मदिरा की दिखा दो इक झलक
आप के अनुकूल लिखने को सदा तैयार हैं
हाशिये पर सच पड़ा है भर रहा है सिसकिया
झूट सीना तान कर भरते दिखे हूंकार हैं
अपना दावा सच लिखेंगे गो छपें या ना छपें
राष्ट्र हित संघर्ष को हम आज भी तैयार हैं
— मनोज श्रीवास्तव