होली आई होली आई
इस पुण्य पर्व में वैमनस्यता
कटुता का होता है विनाश
हर मानव के हृदयागन में
मानवता करती मुक्त हास
इस अवसर पर चेहरे सारे
सब एक रंग हो जाते हैं
और जाति भेद को भूल
सभी को अपनो गले लगाते हैं
मधुमय होली का पर्व
साथ ही नई चेतना लाता है
जो आपस में भाईचारे का
नाता ध्रण कर जाता है
होलिके तुम्हारे आने से
पुलकित मेरा अंतरपट है
आने से है उल्लास नया
होलिके तुम्हारा स्वागत है
हम मानवता को धर्म मान
होली का पर्व मनाते हैं
कटुता की जमी हुई काई
हर मन से दूर हटाते हैं
हर दिल के दर्पण में दिखती
है
मानवता की ही परछाई
अब दूर नहीं दिखती ज्यादा
होली आई होली आई
— डॉक्टर/इंजीनियर मनोज श्रीवास्तव