गजल
कर दिया सबकुछ समर्पित अब बगावत हैं कहाँ
वो करेगा कत्ल मेरा तो शराफत है कहाँ
वो नही काबिल किसी भी बात में खुद देख लो
आ सके जो मंच पर ऐसी सदारत है कहाँ
बेचना ही है शौक है या कुछ खरीदा भी कभी
बेच डा़ला घर , हमारी वो इमारत है कहाँ
साथ देगा वो मुसीबत में न ऐसा सोचना
जो करे दुखियों की सेवा आज ख़सलत है कहाँ
मारना छोड़ा , बहू थाने गई जब से सुना
क्रोध में नर्मी बहुत अब वह हरारत है कहां
भावना सद्भाव की बढती रहे तू कर दुआ
प्रेम से बढ़कर न पूजा और इबादत है कहाँ
— शालिनी शर्मा