कविता

मन के हारे हार

हार को जीत में बदलना है तो
मन से हार का भाव मिटाइए,
जीत का भाव जागृति कीजिए।
क्योंकि जीत और हार
हम और हमारा मन तय करते हैं,
मन में हार का भय हो तो जीत नहीं सकते हैं।
मन को जीत की ओर ले जाते
मन में जीत का भाव जगाइए।
फिर देखिए हार का भय मिट जायेगा
जीत मिलने में अवरोध तो आ सकतें
मगर जीत से कोई रोक नहीं पायेगा।
यह कहावत यूं नहीं मशहूर है यारों
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत
जीवन में इस मंत्र को उतार लीजिए
मन के हारे का हार बस उतार फेंक दीजिए
जीत का पुष्पहार गले में धारण कर लीजिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921