न जाने क्यों यादों की किताब हमेशा जवां होती है
बुढ़ापे से दूर बच्चों की तरह परवान होती है
जब भी तन्हाई हो हमेशा आप के पास होती है
जैसे महबूब की यादें हमेशा दिल के करीब होती है
बीते लम्हों की जैसे अनसुलझी दास्तान होती हैं
न जाने क्यों यादों की बारात हमेशा जवान होती है
अच्छी बुरी, कड़वी खट्टी ,मीठी नमकीन
न जाने क्यों यादों की पोटली व्यंजन सी होती है
मीठी यादों के साथ पल में आंसू छलक जाते हैं
अगले ही पल यादों में मिलकर साथ रोते हैं
जब भी मन उदास हो चिलमन में से झाँक लो
यादों की सजी धजी बारात आस पास होती है
— वर्षा वार्ष्णेय