ब्लॉग/परिचर्चा

सहारे को भी सहारे की जरूरत

गुरमैल भाई के हमारे ब्लॉग पर आने की आठवीं सालगिरह 12 मार्च के उपलक्ष में विशेष-

कभी-कभी ऐसा संयोग होता है, कि बात से बात बन जाती है. हुआ यह कि हमारी दीवार घड़ी जरा सुस्त पड़ गई और 15 मिनट पीछे हो गई. हमने बेटे से कहा कि जरा घड़ी को ठीक कर देना.
“अच्छा जी, कुछ दिन पहले भी ऐसा हो गया था.” बेटे ने कहा.
आपको पता ही है, कि वह भी कवि-लेखक है. जाते-जाते बोला-

“समय ही समय का साथ न दे, तो क्या कहिए!”

बात तो बिलकुल सही थी. इसी से हमें याद आ गई बात-
“सहारे को भी सहारे की जरूरत पड़ जाए, तो क्या कहिए!”

यह बात कही थी गुरमैल भाई ने. गुरमैल भाई पूरे आठ साल से हमारे ब्लॉग के साथ अनवरत जुड़े हुए हैं. गुरमैल भाई से हमारी पहली मुलाकात, जिसे गुरमैल भाई कलम दर्शन कहते हैं, March 12, 2014 के ब्लॉग ‘आज का श्रवणकुमार’ से हुई. इस ब्लॉग में गुरमैल भाई की प्रतिक्रिया लाजवाब थी. हमने आदत के मुताबिक अपनी सामान्य शैली में तुरंत ही उनको उत्तर दिया. हमारे प्रतिउत्तर से वे अत्यंत संतुष्ट और प्रसन्न हो गए. इसके बाद गुरमैल भाई बराबर प्रतिक्रियाएं लिखने लगे और प्रतिक्रियाओं में ही उन्होंने अपने बारे में इतना कुछ बता दिया, कि उन पर बीसियों ब्लॉग्स बन गए. आज वही तारीख 12 मार्च है, हमारे ब्लॉग पर आने की सालगिरह के उपलक्ष में यह ब्लॉग गुरमैल भाई को समर्पित है.
अब बात “सहारे को भी सहारे की जरूरत पड़ जाए, तो क्या कहिए!” की. यह बात गुरमैल भाई ने कही थी, सुनिए उन्हीं के शब्दों में-
“मैं एक डिसेबल हूँ और घर में एक रौलेट, जिस को तीन पहियों वाला वाकिंग फ्रेम भी कह सकते हैं, के साथ चलता फिरता रहता हूँ. एक गंभीर बीमारी के कारण मेरे शरीर की शक्ति भंग होने से इस के बगैर मैं एक कदम भी आगे नहीं जा सकता, क्योंकि मेरा बैलैंस बिलकुल ही ज़ीरो है. टांगों में वह शक्ति नहीं है, जो होनी चाहिए. किसी सहारे के बगैर खड़ा हो जाऊं तो ज़मीन पर गिर जाऊँगा. इस लिए यह रोलेट मेरी लाइफ लाइन है. इस की मदद से मैं अपने आप में संतुष्ट रह कर ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ. एक दिन ऐसा हुआ कि मेरा पैर स्लिप हो गया और रोलेट टेढ़ा हो गया और रोलेट तो नीचे गिरा ही, मैं भी नीचे गिर गया. घर में कोई भी नहीं था. चोट तो कोई ख़ास नहीं लगी, लेकिन उठने के लिए मुश्किल से सोफे को पकड़ कर कुछ देर के बाद उठा. अब बात थी, अपने रोलेट यानी वाकर को उठाने की. कैसे उठाऊं, क्योंकि इस के बगैर तो चलना ही मुश्किल था. कुछ देर सोचता रहा और फिर एक कोने में पड़ी मेरी छड़ी, जो रोलेट से पहले इस्तेमाल किया करता था, पर निगाह पड़ी. मुश्किल से इस को पकड़ा और इस छड़ी की सहायता से अपने वाकर को उठा कर सीधा खड़ा कर दिया. कुछ देर सोचता रहा और फिर अचानक हंसी आ गई. एक बार कहीं पढ़ा था कि कभी-कभी सहारे को भी सहारे की जरूरत पड़ जाती है, आज मेरे साथ भी ऐसा ही हो गया था.”

गिरने-पड़ने के बाद भी ऐसी प्रेरणात्मक बात कहना गुरमैल भाई के बूते की ही बात है.

अब देखिए गुरमैल भाई की एक शानदार प्रतिक्रिया.
रोड शो: साइड इफैक्ट्स
“लीला बहन, रोड शो बहुत अच्छा लगा और इस शो की झाकियां भी दिलचस्प लगीं. इस में मजेदार बात यह रही कि अर्धांगिनी साहिबा गुरद्वारे को जाने से पहले अपने गार्डन से एक बड़ी प्लेट चैरी की और एक प्लेट स्ट्रॉबेरी की लाकर मेरे खाने की मेज़ के नज़दीक रख गई हैं. हमारा ब्रेकफास्ट रोजाना बदल-बदलकर होता है तो आज कॉर्न फ्लेक्स थे. मैंने सोचा, क्यों न इस फ्रूट को कॉर्न फ्लेक्स में डाल दूँ. सो कुछ चैरी की गिटक निकाल कर कॉर्न फ्लेक्स के बाउल में डाल दीं .थोड़ी स्ट्रॉबेरी डालीं. एक मिनट गर्म करके एक चमचा शहद का डाला, कुछ अखरोट डाले जो मैं हर रोज़ खाता हूँ, तो भाई खा गए वाहेगुरू बोल के. अब कितने विटेमिन्ज़ एंड मिनरल शरीर में गए होंगे, पता नहीं लेकिन मन की संतुष्टि जरूर हो गई. इस रोड शो में एक बात जरूर शो करूँगा कि अगर किसी को ऐक्सर्साइज़ की आदत पढ़ जाए, चाहे वह जॉगिंग की हो या योग की, तो यह आदत छूटती नहीं .यही वजह है कि मुझे जिस डाक्टर ने तीन साल दिए थे, अब पंद्रहवा साल जा रहा है और वह हर साल की अपाइंटमेंट के अवसर पर हैरान हो जाता है मुझे देख कर, क्योंकि मेरा रोग जेनेटिक है, इसलिए यह जाएगा नहीं लेकिन अपनी हिम्मत से जिंदगी को चलाये रखने में ऐक्सर्साइज़ और अच्छी खुराक वरदान साबित होती है और यह मेरा अपना तजुर्बा है. गुरमेल भमरा”
गुरमैल भाई का पूरे आठ साल से हमारे ब्लॉग के साथ अनवरत जुड़े रहने के लिए हार्दिक अभिनंदन.

चलते-चलते आपको बताते चलें, कि जय विजय में गुरमैल भाई के 282 ब्लॉग प्रकाशित हो चुके हैं.

गुरमैल भाई की आत्मकथा हिंदी में 201 एपिसोड्स में प्रकाशित हो चुकी है. इसकी 9 ई.बुक्स बनी हुई हैं.

गुरमैल भाई की आत्मकथा पंजाबी में 326 एपिसोड्स में प्रकाशित हो चुकी है.

गुरमैल भाई पर हमारे बीसियों ब्लॉग्स प्रकाशित हो चुके है. इसकी 2 ई.बुक्स बनी हुई हैं.

 

इस ब्लॉग को भी पढ़ें-
संयोग पर संयोग-4
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/coincidences-galore-4/

इस ब्लॉग में आपको गुरमैल भाई की रचनाओं पर आधारित सभी ई.बुक्स का लिंक भी मिल जाएगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

4 thoughts on “सहारे को भी सहारे की जरूरत

  • *गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन, आपके सम्पर्क में आये मुझे आठ साल हो गए, कमाल की बात है! आज का श्रवणकुमार से शुरू हो कर कहाँ-से-कहाँ पहुँच गए, सोचता हूँ, क्या बोलूं! अपनी पंजाबी कहानी में मैंने यही लिखा था कि आपने मेरे लिए जो किया, कोई सगा भी शायद न कर सके. मैंने कभी भी कुछ लिखा नहीं था लेकिन आप से सीखकर जो लिखा, मुझे खुद भी मालूम नहीं कि यह कैसे हो गया. धीरे-धीरे और लेखकों के कलम दर्शन हो गए और उनकी रचनाओं पर टिप्पणी देते-देते उनके साथ सम्पर्क हो गया. कभी-कभी सोचता हूँ कि कुछ लिखने की चाहत हुई तो सेहत साथ छोड़ गई, फिर भी जितना हो सके थोड़ी-बहुत कोशिश करता हूँ. क्या कहूँ! यह सब आपकी बदौलत संभव हुआ है वर्ना मैं तो जीरो ही था.

    • *लीला तिवानी

      गुरमैल भाई जी, सबसे पहले तो आपको हमारे ब्लॉग पर आने की आठवीं सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो. “सहारे को भी सहारे की जरूरत” ब्लॉग को पढ़कर आपने जो भावभीनी बातें लिखी है, हम उससे अभिभूत हो गए. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. “आपके सम्पर्क में आये मुझे आठ साल हो गए, कमाल की बात है!” हमें भी पता नहीं चला. धीरे-धीरे आपकी अनेक रचनाकारों से मुलाकात होती गई, आपकी जान-पहचान से लेकर आपकी उपलब्धियों का दायरा बढ़ता रहा, हम हर्षित होते रहे. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.

    • *लीला तिवानी

      गुरमैल भाई जी, सबसे पहली बात तो यह है, कि हमने तो बस जरा-सा प्रोत्साहन दिया और आप जितना आगे बढ़ पाए वो आपकी मेहनत और लगन का ही सुपरिणाम है. आपकी सेहत आपको अधिक कार्य करने की अनुमति नहीं देती, फिर भी जो कुछ कर रहे हैं, उतना भी करते रहिए, यही बहुत है. आपकी सेहत और उज्ज्वल भविष्य के लिए आपको अनंत बधाइयां और अशेष शुभकामनाएं. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.

  • *लीला तिवानी

    गुरमैल भाई, हमारे ब्लॉग पर आने की आठवीं सालगिरह बहुत-बहुत मुबारक हो. इन आठ सालों में आप बिना नागे अनवरत हमारे ब्लॉग पर दस्तक देते रहे और बहुत कुछ हमें सिखाया और उम्र और तबियत को धत्ता बताकर आप भी बहुत कुछ सीखते रहे. हम आपके बहुत-बहुत आभारी हैं. इन आठ सालों में बहुत-सी उपलब्धियां हासिल करने के लिए अनंत बधाइयां और आगे भी जुड़े रहने के लिए बहुत-बहुत शुभकानाएं.

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