कुसूरवार
कौन है?
कुसूरवार!
कहाँ जा रहे हम आँखों वाले अंधे
कोई भी रास्ता पहचानता नहीं
भीडभाड़ बहुत है यायावरों की
मगर एक दूसरे को कोई जानता नहीं
किताबों में कुछ पन्ने रह गये हैं
सभ्यता,संस्कृति के नाम पर
ईमानदारी लकड़हारे तक सिमित है
संवेदनहीन लड़ रहे जाम पर
दरार बहुत बड़ी है अमीर-गरीब की
भरने का कोई जरिया नजर नहीं आता
सुखा है कंठ करोड़ों का कैसे बूझे प्यास?
इनकी जमीं पर कोई दरिया नजर नहीं आता
सरकारी दफ्तरों में इनकी किस्मत लिखी जाती है
धधकते धुएँ में गरीबी के,कोई चिंगारी ना डाल दे
ये पसीना इनका मिट्टी के तेल की तरहा है देख लेना
राजनीति का माहिर इस जनसैलाब को ना उबाल दे
ध्वस्त हो जायेंगे सब आलिशान बंगले भ्रष्टाचार के
हाथ जोड़ने पर भी कोई रक्तरंजित माफ न करेगा
शोषण इतना भी नहीं के हड्डियां खड्ग बन जायें
अपनी झोपड़ी का टूटा शीशा वो खूं से साफ करेगा
कुसूरवार हो तुम बहुत-सी सजी चिताओं के
कब तक पाप का घड़ा भरते जाओगे
उनको उनका अधिकार सहसम्मान लौटा दो
पाखंडी स्वर में कब तक “मेरा भारत महान” गाओगे