मुक्तक
जन जीवन का आधार सतत वह ज्योति पुंज सविता ही है
बंजर उपवन करने वाली जलधार सलिल सरिता ही है
जो राह दिखाती युग युग से आक्रांत क्लांत मानव मन को
घनघोर तिमिर में आशा की वह एक किरण कविता ही है
जो विपदाओं में सहला दे हम उसको कविता कहते हैं
जो व्याकुल मन को बहला दे हम उसको कविता कहते हैं
जिसको सुनकर रक्त शिराओं का दौड़े लावा बनकर
जो चट्टानों को पिघला दे हम उसको कविता कहते हैं।
— डॉ./इं. मनोज श्रीवास्तव