कवि तुम क्या हो?
कवि
तुम पुजारी हो
दृश्य के
अदृश्य के
श्रव्य के
सत्यम के
शिवम के
सुंदरम के.
कुछ भी नहीं है
तुम्हारे लिए व्यर्थ
क्योंकि
तुम
सार-सार
ग्रहण करने में
हो समर्थ.
तुम
संवेदनशील हो
देते हो वाणी
दिल की गहराइयों को
छू लेते हो आसमां
गुंजा देते हो
सन्नाटे वाली तनहाइयों को.
तुम
परमपिता परमात्मा की
अनुपम कृति हो
अलभ्य अनुकृति हो
धर्म की धृति हो
वरेण्य वृति हो
संप्रेष्य भावों की
पुनीत प्रतिमूर्ति हो.