कविता

कवि तुम क्या हो?

कवि
तुम पुजारी हो
दृश्य के
अदृश्य के
श्रव्य के
सत्यम के
शिवम के
सुंदरम के.

कुछ भी नहीं है
तुम्हारे लिए व्यर्थ
क्योंकि
तुम
सार-सार
ग्रहण करने में
हो समर्थ.

तुम
संवेदनशील हो
देते हो वाणी
दिल की गहराइयों को
छू लेते हो आसमां
गुंजा देते हो
सन्नाटे वाली तनहाइयों को.

तुम
परमपिता परमात्मा की
अनुपम कृति हो
अलभ्य अनुकृति हो
धर्म की धृति हो
वरेण्य वृति हो
संप्रेष्य भावों की
पुनीत प्रतिमूर्ति हो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244