दोहा गीतिका
जल से कल है जीव का,जल ही जीवन मीत
जल की रक्षा हम करें,समय न जाए बीत।।
जल- दोहन दूषण करे,भूल गया यह बात,
जल से ही सुंदर सदा,पावस, गर्मी, शीत।
खाद रसायन की लगा, उपजाते फल, अन्न,
वे नर जग भवितव्य से,लेश नहीं भयभीत।
विश्व-ताप नित बढ़ रहा,क्षीण पर्त ओजोन,
रोग नित्य बढ़ने लगे,मनुज प्रकृति विपरीत।
पर्वत जब तक नीर दें, तब तक सरि जीवंत,
सागर सूखेंगे सभी, मेघ न बरसें मीत।
चेत!चेत!! नर चेत जा,नष्ट न कर भंडार,
जल बिन सब निस्सार है,होगी कभी न जीत
जल पीयूष तेरा ‘शुभम’,और न कोई राह,
जीवन के संगीत में,जल से ही हर गीत।
— डॉ.भगवत स्वरूप ‘शुभम’