विश्वबंधुत्व
आज विश्व में बंधु-भाव का,
पतन दिखाई देता है।
अपने तक सीमित है मानव,
बनता विश्व – विजेता है।।
अपना उदर श्वान भी भरते,
बस अपने तक जीते हैं।
ऐसे मानव देह धरे बस ,
अंतर में वे रीते हैं।।
परहित में जीने वाला ही,
सबको अपना लेता है।
आज विश्व में बंधु- भाव का,
पतन दिखाई देता है।।
एक – एक मिल ग्यारह होते,
शक्ति बहुत बढ़ जाती है।
मानव की एकता सदा ही,
सहज सुखद बन पाती है।।
जीवों में मानव सर्वोत्तम,
वही जगत का नेता है।
आज विश्व में बंधु -भाव का,
पतन दिखाई देता है।।
प्रभु ने तुम्हें बनाया मानव ,
मानवता से जीना है।
परहित में विष भी मिल जाए,
उसे सहज ही पीना है।।
नीलकंठ शिव बन जा मानव,
धरती का अभिनेता है।
आज विश्व में बंधु -भाव का,
पतन दिखाई देता है।।
सूरज, सोम, वायु, जल, धरती,
बिना शुल्क सब देते हैं।
गगन, अनल कुछ भी न माँगते,
जग को अपना लेते हैं।
बूँद – बूँद से सागर बनता,
तू न अभी क्यों चेता है?
आज विश्व में बंधु -भाव का,
पतन दिखाई देता है।।
तू प्रहार पाहन का करता,
फिर भी तरु फल देता है ।
सरिताओं को दूषित करता,
नैया जलनिधि खेता है।।
‘शुभम’ नेह से जग को भर दे,
तू ही मीत सुचेता है।
आज विश्व में बंधु -भाव का,
पतन दिखाई देता है।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’