कविता

मैं कौन हूँ

बड़ा कठिन है यह कह पाना
कि मैं कौन हूं,
प्रकृति का अंश मात्र
या ईश्वर का दूत हूँ,
या फिर चलता फिरता
मात्र एक आकार हूँ।
जिसे अदृश्य शक्ति चलाती है,
इस काया पर हमारा
जरा भी अधिकार नहीं।
हम अहम में जीते हैं
यह तो जानते तक नहीं
कि हम कौन हैं,
फिर भी गर्व से इतराते हैं
बार बार दुनिया को बताते हैं
मैं कौन हूँ।
जब हम एक साँस भी
खुद से ले नहीं सकते
एक कदम चल नहीं सकते
हम आजाद नहीं हैं
अनजानी अनदेखी सत्ता के
सदा ही अधीन हैं,
हम कुछ भी नहीं हैं,
तब भी व्याकुल हैं
अकुलाते हैं, भटकते हैं
धरा पर आखिरी सांस तक
इधर उधर बेचैन दौड़ते भागते हैं
पर ये नहीं जान पाते
कि मैं कौन हूं
या समझ नहीं पाते कि मैं कौन हूं।
आत्मावलोकन करते नहीं
भ्रम में डूबे
भ्रमित बने रहना चाहते हैं
वास्तव में हम जानना ही नहीं चाहते
कि हम कौन हैं, हम कौन हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921