कविता

बुढ़ापा

बुढ़ापा जीवन का दर्पण है
दर्शन जीवन का झलकता है
शिक्षा की जीवन्त पाठशाला है
जहाँ जीवन ही दीखता  है

बुढ़ापा अनुभव की भरा खजाना
दिलो दिमाग की तिजोरी में अर्जित है
बिना दाम का मिलती  है सलाह
जो सीख जीवन से अर्जित है

दरवाजे पर बैठ बुढ़ापा अब
घर आँगन का रक्षक   बना
ऊँच नीच का अनुभव देकर
परिवार का वो सचेतक है बना

डॉट डपट आर्शिवचन है इनका
इनकी बातों का बुरा ना मानना
अच्छे प्रशाषक् की भूमिका में
इनकी बातों का अहमियत देना

उतार चढ़ाव जीवन भर है देखा
अच्छे बुरे का एक लेखा    है
इनके जीवन की हर एक कहानी
नजदीक से जो जग देखा है

सलाहकार की भूमिका   में
सीख बुढ़ापा से ही लेना है
इनके जैसा कोई किताब नहीं
जिनके जीवन में कई  लेखा

कभी दोस्त बन जाता है ये
कभी धौंस दिखलाता है
भले बुरे कर्मों  से निकाल
सन्मार्ग की राह बतलाता है

ना भेजो इन्हें वृद्धाश्रम में
इनको हमारी जरूरत है अभी
घर में सम्मान देना है बुर्जुग को
हमारे लिये जरूरत है  अभी

अनुभव का एक ग्रन्थ है बुढ़ापा
आओ हम मिलकर पाठ पढ़ें
अपने जीवन में इनकी जीवन से
नित्य नई एक बात जीवन की गढ़ें

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088