लघुकथा

बेनाम रिश्ता

सुबह सुबह जैसे ही वट्स एप्प खोला तो सबसे पहला मैसेज यही दिखा- “हर इंसान की ज़िंदगी मे एक इंसान ऐसा जरूर होता है जो किस्मत में नही होता लेकिन दिल और दिमाग मे ज़िन्दगीभर रहता है।” और वो मैसेज पढ़ते पढ़ते उस को लगा कि जैसे किसी ने ये सिर्फ उसी के लिए ही भेजा है हालांकि ये मैसेज उसने साठ लोगों के ग्रुप में  देखा था।
आंखें बंद करके नीरजा फ़्लैश बैक में चली गयी। क्या दिन थे वो भी जब राजीव उस से पहली बार मिला था।लेकिन उसकी पहली नज़र ही उसको सम्मोहित कर गयी। वक़्त की आंधी कुछ ऐसी चली कि दोनो के रास्ते जुदा हो गए और दोनों अपनी ज़िंदगी मे एक नए हमसफ़र के साथ आगे बढ़ गए। ईमानदारी से अपने रिश्तों ओर जिम्मेदारियों को निभाते रहे लेकिन दिल से उस मीठी याद को मिटा नहीं पाए।
 एक बार कहीं  पढ़ा था कि वक्त का पहिया गोल है। इंसान जहां से चलता है एक बार वहां वापिस जरूर आता है और वक्त का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि उसने एक बार फिर से दोनो को एक दूजे के सामने लाकर खड़ा कर दिया।
और आज ऐसा लगता है कि जैसे पतझड़ के बाद ज़िन्दगी रूपी पौधे पर नई कोंपले खिल गयी हों। जैसे बहुत गर्मी के बाद बारिश की फुहारें तन मन को भिगो जाती हैं। ऐसे सुखद एहसास के साथ दोनो बस एक दूसरे की आवाज सुन लेते और हाल चाल पूछ लेते  कुछ बातें कर लेते तो मन को जैसे तस्सली मिल जाती और लगता कि कुछ अधूरा सा खालीपन सा था जो अब भर गया है।
क्योंकि ये वो रिश्ता था जिसको अब कोई नाम तो दे नहीं सकते। ये वो रिश्ता था जो शारीरिक मिलन या दुनियावी मिलन से परे हटकर बस आत्मिक मिलन का ही था  जिसे शायद दुनिया कभी ना समझ पाए।
और कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो बाकी सब रिश्तों से ऊपर होते हैं लेकिन उन रिश्तों को दुनिया के सामने कोई नाम नही दे सकते। इन रिश्तों का दुनिया की नजरों से अनाम और गुमनाम रहना ही बेहतर होता है।
— रीटा मक्कड़