ग़ज़ल
हम उन की मजारों पर सर झुकाते रहे
वो हमारे मन्दिरों को गिराते रहे।
हम फूल कब्र पर चढाते रहे।
वो जिंदा हमें जलाते रहे।
हमने हर तरह उनकी इज्जत रखी
वे इज्जत की धज्जी उड़ाते रहे।
गले से हमने लगाया उन्हें,
वो गला रेत खुशियाँ मनाते रहे।
हम घरों में उनको बुलाते रहे।
वो घरों को हमारे जलाते रहे।
— संध्या चतुर्वेदी