उदास लड़के देखे है कभी
उदास लड़कों के भीतर अंतर्द्वंद्व का दावानल भड़भड़ता रहता है,
झाँका है कभी उदास बैठे लड़कों की रूह के अंदर? भीड़ में भी अकेलेपन का शिकार होते विचारों की आवाजाही में तैरते उदास लड़के बहुत अकेले होते है, भावहीन चेहरे पर नज़रें ठहराकर देखो भीतर से हिले हुए होते है…
ना..
प्रेम में धोखा मिलने पर या किसी लड़की के छोड़ जाने का मातम नहीं मना रहे होते..
ज़िंदगी उसके लिए संघर्ष का बिहड़ जंगल है वो उस जंगल में खोना नहीं चाहता…उसे असमंजस है ज़िंदगी की रेस में अपने आपको प्रस्थापित कर पाएगा या हार जाएगा उस जद्दोजहद से जूझते शून्य में तक रहा होता है…
ये बचपना नहीं उनका, ये फ़िक्र है,
क्या मैं पिता की अपेक्षाओं को पूरा कर पाऊँगा, माँ के सपने और बहन की ज़िंदगी में इन्द्रधनुषी रंग भर पाऊँगा या नहीं…
मैं पास होऊँगा? मुझे नौकरी मिलेगी?
क्या अपनों की नज़रों में खरा उतर पाऊँगा….
असंख्य सवाल करती डराती है उसे ज़िंदगी, जलाती है चुनौतियाँ और तड़पाती है बेरोजगारी
वो जानता है उसकी पीठ को मजबूत बनाना होगा,
परिवार की बुनियाद है बेटा उसे हर किसीको खुश रखना होगा…क्या रख पाएगा?
पूरी रात खयालों के बवंडर से भीड़ते काटता है,
वह नहीं चाहता सुबह उठकर कमरा ठीक करते हुए माँ गीले गिलाफ़ को छूकर रो दे… इसलिए वो आँसू नहीं बहाता
उदास रहकर चिंतनशील रहता है…
उदास लड़के को मंज़िल का पता नहीं होता उसे अंतहीन दिशा में दौड़ना होता है,
थकना या हारना नहीं जूझना होता है,
अपने जैसे असंख्य प्रतिस्पर्धीयों की भीड़ को चीरकर आगे निकलने का प्रयत्न ही उसकी उदासी का कारण है।
उदास लड़के यूँही उदास नहीं होते
मन में सपनें होते है, दिल में उत्साह और
कितना कुछ पाने की तमन्ना से लड़ते घबराता है उसका मन…
लड़कों की कश्मकश भरी उदासी बहुत दर्दनाक होती है…वो अवसाद को काबू में करने की कोशिश कर रहा होता है,
न कह सकता है, न सह सकता है बस उदास रहकर खुद को खुद में ढूँढता रहता है..
इतना ख़ाली कभी कुछ नहीं हो सकता,
जितना ख़ाली एक उदास लड़के का मन होता है..बेटे को कभी यह मत सिखाओ की लड़के रोते नहीं, आँसूओं को उसके एहसासों को बहने का ज़रिया बनने दो..महज़ चार बूँद आँखों से टपकते ही नखशिख हल्का हो जाएगा..
बेटों के लिए बदतर होती है एक उम्र,
उस उम्र के सफ़र में बेटे के हमसफ़र बन जाईये,
पास बिठाकर पूछिए सबब उदासी का बेटे से और इतना ही कहिए “मैं हूँ ना”
उदासीयों से उभर जाएगा बेटा, मर्द नाम का मुखौटा उतार कर बच्चा बनकर लिपट जाएगा।
— भावना ठाकर ‘भावु’