नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है
हिन्दू नववर्ष तुम्हारा अभिनन्दन है
हर्षित है जग सारा करता तुम्हारा वन्दन है
सूरज की नवल किरणें करती जग वन्दन है
अभिनन्दन अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारा वन्दन है
फूले किंशुक पलाश फूली सरसों पीली
फूले फूल तीसी नीली नीली हुलसित
पक गई खेतों में गेहूँ की सुनहरी बालियाँ
कमल खिली लगी मुस्कुराने ताल हुई हर्षित
बागबां महक उठे जब खिले फूल फूलन
खेतों में मेड़ों में सुवासित कछारन कूलन
अतृप्त मन प्यासी धड़कन मिटने लगी जलन
आनन्दित होकर चुन चुन गजरा बनाई मालिन
धरा ने ओढ़ ली सुनहरी चादर की किरणें
मोतियों ज्यों चमकने लगी पत्तों में ओस की बूंदें
लहक लहक लहकने लगी कानों के बूंदें
स्मित रक्तिम अधरों पर मुस्कुराती जल बूंदें
सतरंगी रंगों से रंगने लगी घर आंगन और बाग
बहकने लगी आम अमरैया दहके मन की आग
फूले फूल टेसू के ऐसे जैसे हवन कुण्ड की आग
सागर में उछलती लहरें देती प्रशन्नता की झाग
कर पाऊं हर सपने सच ऐसी लागी लगन
तेज पुंज प्रकाश से बढ़ने लगी अवनी की अगन
खुशियों से दमकने लगी हर चेहरा बनकर चन्दन
आओ मिलकर करें हिन्दू नववर्ष का अभिनन्दन…….
— राजेन्द्र कुमार पाण्डेय “राज”