कविता

बसंत बहार

कवि मन नर्तन करे
पाँव भी थिड़कन लगे
गुलमोहर ने बिछाई
रक्तवर्ण पुष्प जब धरा पर
अमलताश भी सुरभित होकर
स्वर्णआभा बिखेरे गगन पर
आ रही माँ की सवारी
झूमते खग पुष्प वृंद सब
प्रकृति चोला बदल रही
नवयौवना सी इठलाती हुई
कोयल की कूक सुनाई देने लगी
ब्रह्ममुहूर्त शुरू होते ही
ढ़ोल नगाड़े और मंजीरे
बज उठे हैं आज सारे
कलशयात्रा में हैं निकली
माँ दुर्गा की बेटियां हमारी ।
बैलों की घंटी भले ही नहीं सुनाई दे
कृषक हूलस कर गाते चैता मदभरी ।
नववर्ष के शुभ आगमन पर
झूम उठी बसंत रानी हर कहीं ।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]