कर्म तुम्हें करना होगा
बातों से ना मंजिल मिलती, पल-क्षण नित चलना होगा।
नव संवत शुभ हो, इस खातिर, कर्म तुम्हें करना होगा।।
कैसा संवत बीत गया यह, कुछ पल रुको विचार करो,
कितना काम किया है,तुमने? केवल नहीं प्रचार करो।
कितना अर्जित ज्ञान किया है? बढ़कर के आचार करो,
मर-मर करके जिये कितना? ना, खुद पर अत्याचार करो।
केवल सुख ही नहीं हैं पथ में, कष्टों को भी सहना होगा।
नव संवत शुभ हो, इस खातिर, कर्म तुम्हें करना होगा।।
पद,धन और जाति का बंधन, अब तो हमें त्यागना होगा,
स्वाभिमान से कर्म करेंगे, कोई किसी का गुलाम न होगा।
भ्रष्ट आचरण झूँठे भाषण, जड़ से इन्हें मिटाना होगा,
लोकतंत्र और सत्य अहिंसा, हर हालत पथ पाना होगा।
रामकृष्ण हों पथ-प्रदर्शक, विवेकानन्द पथ चलना होगा।
नव संवत शुभ हो, इस खातिर, कर्म तुम्हें करना होगा।।
शुभ और अशुभ कामना से,तुझको ना फल मिल पायेगा,
कुछ करके भी दिखला बन्दे,विरुदावलि कब तक गायेगा?
तंत्र-मंत्र और जप पूजा में, कब तक तू भरमायेगा?
दरिद्रनारायण की सेवा से, तुझे ईश मिल जायेगा।
वसुधा है परिवार हमारा, सबके हित में ढलना होगा।
नव संवत शुभ हो, इस खातिर, कर्म तुम्हें करना होगा।।