ग़ज़ल
सिमटता है कभी ये फैलता है
हमारे बीच ऐसा फ़ासला है
नया इक मोड़ लेता जब समझते
सुलझने को पुराना मामला है
कहा जब इश्क़ मुश्किल में सुना ये
तुम्हीं जानो तुम्हारा माजरा है
बढ़े जाते दिमाग़ों के इलाक़े
घटा जाता दिलों का दायरा है
बचेंगे या नहीं लेकिन रचेंगे
हमें क्या ख़ौफ़ तानाशाह का है
हमारी परवरिश हिन्दू धरम की
हमारा बुद्ध वाला फ़लसफ़ा है
मुहब्बत का दिया जलता रहेगा
बुझाना चाहती जिसको हवा है