ब्लॉग/परिचर्चा

चेटीचंड: झूलेलाल जयंती

चेटीचंड भारत एवं पाकिस्तान के सिंधी समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण पर्व है जो नववर्ष के प्रथम दिन मनाया जाता है. विश्व के अन्य भागों में बसे हुए सिंधी लोग भी चेटीचंड मनाते हैं. यह हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के दूसरे दिन (अर्थात वर्ष प्रतिपदा के अगले दिन) मनाया जाता है.

 

भारत में विभिन्न धर्मों, समुदायों और जातियों का समावेश है इसलिए यहां अनेकता में एकता के दर्शन होते हैं. यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि यहां सभी धर्मों के त्योहारों को प्रमुखता से मनाया जाता है चाहे वह दीपावली हो, ईद हो, क्रिसमस हो या भगवान झूलेलाल जयंती.

 

सिंधी समुदाय का त्योहार भगवान झूलेलाल का जन्मोत्सव ‘चेटीचंड’ के रूप में पूरे देश में हर्षोल्लास से मनाया जाता है. इस त्योहार से जुड़ी हुई वैसे तो कई किवंदतियां हैं, परंतु प्रमुख यह है- सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है सो वे व्यापार के लिए जब जलमार्ग से गुजरते थे तो कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था. जैसे समुद्री तूफान, जीव-जंतु, चट्‍टानें व समुद्री दस्यु गिरोह जो लूटपाट मचाकर व्यापारियों का सारा माल लूट लेते थे. इसलिए इनके यात्रा के लिए जाते समय ही महिलाएं वरुण देवता की स्तुति करती थीं व तरह-तरह की मन्नतें मांगती थीं. भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अत: ये सिंधी समुदाय के आराध्य देव माने जाते हैं. जब पुरुष वर्ग सकुशल लौट आता था, तब चेटीचंड को उत्सव के रूप में मनाया जाता था, मन्नतें पूरी की जाती थी व भंडारा किया जाता था.

भारत विभाजन के बाद जब सिंधी समुदाय भारत में आया तब सभी तितर-बितर हो गए. तब सन् 1952 में प्रोफेसर राम पंजवानी ने सिंधी लोगों को एकजुट करने के लिए अथक प्रयास किए। वे हर उस जगह गए जहाँ सिंधी लोग रह रहे थे. उनके प्रयास से दोबारा भगवान झूलेलाल का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा जिसके लिए पूरा समुदाय उनका आभारी है.

आज भी समुद्र के किनारे रहने वाले जल के देवता भगवान झूलेलाल जी को मानते हैं. इन्हें अमरलाल व उडेरोलाला भी नाम दिया गया है. भगवान झूलेलाल जी ने धर्म की रक्षा के लिए कई साहसिक कार्य किए, जिसके लिए इनकी मान्यता इतनी ऊंचाई हासिल कर पाई.
जिन मंत्रों से इनका आह्वान किया जाता है उन्हें लाल साईंअ जा पंजिड़ा कहते हैं. वर्ष में एक बार सतत चालीस दिन इनकी अर्चना की जाती है जिसे ‘लाल साईंअ जो चालीहो’ कहते हैं. इन्हें ज्योतिस्वरूप माना जाता है अत: झूलेलाल मंदिर में अखंड ज्योति जलती रहती है, शताब्दियों से यह सिलसिला चला आ रहा है. ज्योति जलती रहे इसकी जिम्मेदारी पुजारी को सौंप दी जाती है. संपूर्ण सिंधी समुदाय इन दिनों आस्था व भक्ति भावना के रस में डूब जाता है.

अखिल भारतीय सिंधी बोली और साहित्य ने इस ‘सिंधियत डे’ घोषित किया है. आज भी जब कोई सिंधी परिवार घर में उत्सव आयोजित करता है तो सबसे पहले यही गूँज उठती है- ‘आयोलाल झूलेलाल’ बेड़ा ही पार अर्थात इनके नाम का जयघोष करने से ही सब मुश्किलों से पार हो जाएंगे.

सभी को झूलेलाल महोत्सव चेटीचंड की हार्दिक शुभकामनाएं.

10 अप्रैल को सिंधी भाषा दिवस मनाया जाता है.

10 अप्रैल 1967 को सिंधी भाषा को भारतीय संविधान में शामिल किया था. इसी दिन संविधान में सिंधी भाषा को मान्यता दी गई थी. इसे सिंधी समाज पर्व के रूप में मनाता है.
सिंधी भाषा की विशेषता की एक मिसाल-
हर भाषा की कोई-न-कोई विशेषता होती है. सिंधी भाषा का एक शब्द है- मणिया. मणिया शब्द से ही अंदाजा लगता है कि इसका अर्थ मणि, माणिक मोती-रत्न आदि होता है. आप लोगों ने सही अंदाजा लगाया है. जब हम किसी बच्चे को आशीर्वाद देते हैं तो कहते हैं- “भगवानु बचिड़े खे मणिया डिए” अर्थात भगवान बच्चे को मणिया दें. अब इस मणिया शब्द का अर्थ मणिया यानी मोती-धन-दौलत तो है ही. अब मोती-धन-दौलत तो आनी-जानी चीज है, फिर आशीर्वाद का क्या अर्थ होगा! मणिया का दूसरा अर्थ है- सुसंस्कार यानी अर्थात भगवान बच्चे को मणिया (सुसंस्कार) दें. सुसंस्कार होंगे तो वह धन-दौलत खुद कमा लेगा, सुसंस्कार न होने पर पाई हुई दौलत भी गंवा देगा-
“पूत कपूत तो क्यो धन संचे, पूत सपूत तो क्यो धन संचे.”
सिंधी भाषा के “मणिया” शब्द का दूसरा अर्थ सुसंस्कार कितना संस्कारी है!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244