लघुकथा

हर रोज “वैलेंटाइन डे”

“हैलो जूलियाना, क्या हाल हैं?” जूलियाना ने ग्रास कटिंग मशीन से घास काटती हुई जूलियाना को देखकर प्रिटिशा ने कहा.
“मैं बिलकुल ठीक हूं, आप कैसी हैं?” प्रिटिशा की कार के पास आकर जूलियाना ने अभिवादन करते हुए पूछा.
“मैं भी बिलकुल ठीक हूं, पर आश्चर्य है कि वैलेंटाइन सप्ताह में भी तुम यह काम कर रही हो!”
“कुछ लोग एक दिन वैलेंटाइन डे मनाते हैं, कुछ लोग सात दिन वैलेंटाइन सप्ताह मनाते हैं, हम तो हर रोज वैलेंटाइन डे मनाते हैं.”
“वो कैसे!” जूलियाना के जवाब से प्रिटिशा ने और भी हैरान होकर पूछा.
“मैं और डगलस जो भी काम करते हैं, एक साथ करते हैं. वो देखो अंदर डगलस पौधों की कटिंग कर रहा है. हम सुबह मिल-जुलकर घर का काम निपटाते हैं और फिर काम पर निकल जाते हैं. काम खत्म होने पर घर जाकर मिल-जुलकर घर का काम निपटाकर मनोरंजन करते हैं, कभी लौंग ड्राइव पर निकल जाते हैं.”
“इससे रोज वैलेंटाइन डे कैसे मन जाता है?”
“तनिक रुको तो, वही बता रही हूं.” जूलियाना ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा. “हम केवल 7 फरवरी को ही नहीं प्रतिदिन एक दूसरे को अपनी बगिया के रोज़ देते हैं.”
“अच्छा!”
“अक्सर हम एक दूसरे को प्रपोज करके अपने पहले प्रपोज डे की याद ताजा रखते हैं.” प्रिटिशा सुनती जा रही थी.
“चॉकलेट डे मनाने का भी हमारा अपना अंदाज है. मैं अपने बनाए हुए चॉकलेट डगलस को देती रहती हूं और डगलस अपने बनाए हुए मुझे.” प्रिटिशा ने चॉकलेट डे मनाने के ऐसे अंदाज की कल्पना तक भी नहीं की थी.
“इससे भी मजेदार बात टैडी डे वाली होती है. हम यूं ही कभी-कभी टैडी डे मना लेते हैं. डगलस मुझे कहता है- “तुम मेरी टैडी हो.” मैं कहती हूं, “नहीं, तुम मेरे टैडी हो.” जीवन में चरपरापन भी तो होना चाहिए न! केवल मिठास से भी जीवन में नीरसता आ जाती है.” प्रिटिशा की हैरानी का जवाब नहीं!
“अच्छा बताओ, प्रॉमिस डे कैसे मनाती हो?”
“लीजिए, जब मन आता है हम प्रॉमिस डे मना लेते हैं. मैं डगलस को याद दिलाती हूं, कि “तुमने देश को हमेशा सर्वोपरि मानने की प्रॉमिस की थी, याद है न!” डगलस मुझे याद दिलाता है, कि “तुमने हमेशा ईमानदार रहने की प्रॉमिस की थी, याद है न! ऐसे ही
कभी प्यार, कभी तकरार चलता रहता है.”
“अब तुम पूछोगी कि हग डे और किस डे का क्या शेड्यूल है? तुम तो जानती ही हो, कि ऑस्ट्रेलिया में किसी को भी हग और किस करने की पाबंदी नहीं है, पति-पत्नी एक-दूसरे के सामने किसी को भी हग-किस कर लेते हैं. आजकल कोरोना के कारण ऐसा करना तो छोड़ ही दिया है, यहां तक कि हाथ मिलाना भी छोड़ दिया है, पर हम काम पर निकलने से पहले एक-दूसरे को हग-किस करके ही निकलते हैं, इससे हमें बड़ी सरलता से काम करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा मिल जाती है और काम से वापिस आने पर ऐसा करने से सारी थकान मिट जाती है.”
“फिर तो तुम्हारा वैलेंटाइन डे भी विशेष होता होगा.” प्रिटिशा की जिज्ञासा और हैरानगी चरम सीमा पर थीं.
“बिलकुल दुरुस्त फरमाया तुमने! जब मन आता है, हम अपनी शादी के जोड़े पहनकर उसी दिन जैसे नए-नए हो जाते हैं, सेल्फी खींचते हैं और प्यार में खो जाते हैं.”
“अच्छा जूलिया, मैं चलती हूं.” प्रिटिशा ने कार वापिस मोड़ ली.
“उधर कहां चल दीं? यह तो बताओ!”
“मैं एलैक्स को गिफ्ट करने के लिए टैडी लेने जा रही थी, अब तो मैं भी जाकर उससे कहूंगी “तुम मेरे टैडी हो!”
अब हमारा भी हर रोज “वैलेंटाइन डे” होगा!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “हर रोज “वैलेंटाइन डे”

  • *चंचल जैन

    आदरणीय लीला दीदी, सादर प्रणाम। बहुत खूब। प्रेम हमेशा रिमझिम बारिश की बूंदों सा शीतल एहसास हो। मनचाहा बंधन, रेशम स्पर्श हो। प्रेम न करे तोलमोल, चाहे सदा विचार, आचार, व्यवहार, में तालमेल। बहुत सुन्दर विचार। रोज ही वैलेंटाइन डे मनाये, खूब खुश रहे। सादर

    • *लीला तिवानी

      चंचल जी, आपको “हर रोज “वैलेंटाइन डे” (लघुकथा)” ब्लॉग बहुत सुंदर लगा, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. “प्रेम रिमझिम बारिश से शीतल एहसास हो, प्रेम रेशम बंधन, दिल का सुकून हो.” ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन.

  • *लीला तिवानी

    त्योहार कोई भी हो, होली, दिवाली या फिर वैलेंटाइन डे, प्रेम-प्यार हो तो हर दिन त्योहार है, त्योहार का अर्थ ही है- प्रेम-प्यार, आदर-सत्कार.

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