लघुकथा – मजदूर
रामू-कल की मजदूरी बाक़ी है कल मैं आपसे मांगना भूल गया था। मां का इलाज करना है।साहिब दे दो ना मेरी मज़दूरी।
सेठ दयाराम-कल नहीं मांगी तुमने ।तुम्हारी गलती है। अब मैं कुछ नहीं कर सकता।सेठ जी बड़े रूखीपन से रामू से बोलें।
रामू-सहिब ये तो अच्छी बात नहीं है।आप का काम मैं पूरी ईमानदारी से करता हूं।कभी कभी तो समय हो जाता है।तो भी मैं जब तक काम पूरा नहीं हो जाएं मैं घर नहीं जाता।
सेठ दयाराम-अबे पैसे तो रोज देता हूं तुमने ही नहीं मांगे तो मैं क्या करूं। तुम्हारे अलावा भी मुझे बाक़ी मजदूर को देखना होता।किस किस का ध्यान रखूं। अगले माह ले लेना। अभी नहीं है।
रामू-ठीक है साहब कोई बात नहीं मेरी मज़दूरी उधार रहीं।इतना कहकर रामू चला गया।
सेठ दयाराम को ठीक से नींद नहीं आई। मजदूर कि मां का ख्याल उसको चैन से सोने नहीं दे रहा था। सेठ जी खुद को कोसने लगे। और मजदूर का कर्ज उनको सोने नहीं दे रहा था। और वो अगले माह का इंतजार करने लगें