वीणा के सुर खामोश हो रहे
मेरी तमन्नाओं के कातिल बता तूने हमें वफा क्यों न दी।।
कभी मांगा न कुछ तुझसे , फिर भी सज़ा मैंने तुझे क्यों न दी।।
अपनी सांसों के हर बंधन में तुझे समाए थे हम
हर बंधन तोड़े तूने , फिर भी तुझे अब तक भुला क्यों न दी।।
शायद मेरी इस रूह ने ,तुझे अपनी रूह में बसाया था
मेरी वफ़ा के काबिल तू न था , ये खुद को मैं समझा क्यों न दी।।
याद आते अब भी तेरे संग गुज़ारे वो हर एक हसीन पल
आज भी उम्मीद लगाए बैठी , हर उम्मीद एक तोड़ क्यों न दी।।
तेरे सिवा कोई भी मेरे दिल को भाता नहीं सुन मेरे हमनवां
तेरी राह तकती आज भी , तूने लौट दिल पर दस्तक क्यों न दी।।
सोचती हूं कभी तो याद मेरी भी , तुझे सच सताती होगी
वीणा के सुर के मोती खामोश न हो जाएं , तुमने आवाज़ क्यों न दी।।
— वीना आडवाणी तन्वी