ग़ज़ल
तेरी आंखों में खुद के लिए नफरत नहीं चाहिए
जो समझे ना जज्बात वो मोहब्बत नहीं चाहिए|
दिल में कुछ हो जुबां पर कुछ और हो
खुदा की ऐसी इबादत नहीं चाहिए|
चाहा था जिसे टूट कर कभी हमने
मुझे अपने प्यार में रहमत नहीं चाहिए|
चंद सिक्कों की खातिर छोड़ा तुमने दामन
मुझे अपने प्यार की कीमत नहीं चाहिए|
वफा की उम्मीद तुझसे क्या करें ‘मीरा’
छल कपट से भरी विरासत नहीं चाहिए|
— सविता सिंह मीरा