सामाजिक

देखा देखी क्या और क्यों हो रहा हैं?

मानव एक सामाजिक प्राणी हैं जो हर हमेश साथ की चाह में रहता हैं।साथ भी कैसा,जो अपने विचारों से मेल खाता हो वैसा।जब हम पाठशाला जाते थे तब अपने घर के आसपास रहने वाला  और जो खेल हम खेलना चाहते थे वैसे खेल खेलने वाला ही साथी होता था।थोड़े बड़े होते ही दायरा खेलों से बड़ा हो,अपनी विचारों से मेल रखने वालें दोस्त बन जाते हैं।जैसे अगर आप की राजकरण की ओर रुचि हैं तो आप के मित्र मंडल में भी वही लोग शामिल होंगे जिसकी भी रुचि राजकरण में हो।अगर आप विविध खेलों में अग्रसर हैं तो मित्रों का चयन भी वैसा ही होगा।एक ही मतलब हैं की मित्रों में सामान्य विचारों  साम्य होता ही हैं।आज के मित्रों में एक और लाक्षणिकता देखने मिलती हैं, जो हैं व्यसनों में उलझाना,अब विचारों के बदले व्यसनों में साम्य देखने मिलता हैं।
  जो तंबाकू– गुटका खातें हैं वे एक दूसरे का साथ पसंद करेंगे,और चर्चा में भी वह कितना नुकसानदायक हैं वह नहीं होता कौनसा ब्रांड अच्छा हैं ये चर्चा होती हैं।वैसे ही शराब का सेवन करने वालें  साथ ढूंढतें रहतें हैं।क्योंकि शराब से सेवन के लिए तो साथ होना अति आवश्यक हैं ,उनको अकेले में पीने का मजा ही नहीं आता हैं,महफिल जमा के ही मजे लेते हैं लोग।और जाम, पैमाना और शीशी ने तो साहित्य में भी बड़ा स्थान पाया हैं।बड़े बड़े शायरों ने इसी के सहारे बहुत नाम कमाएं हैं।बहुत ही नवाजा गया हैं बोतलों को भी।
     लेकिन इससे आगे भी नशें हैं,अफीम,गंजा,चरस आदि जो ज्यादातर गावों में देखे जाते हैं, और यही ले डूबते हैं युवाओं को,उनके भविष्य को लेकिन कोई भी समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं।अगर हम अपने युवाधन को बचाना चाहतें हैं तो इन सामाजिक बदियों से भी बचाना होगा।
 वैसे शहरों में भी इनका कईं लोग नशा करते हैं लेकिन ज्यादातर लोग हशीश,मारीजुआना आदि  लेते हैं लेकिन उससे ज्यादा नाक से और इंजेक्शन से ज्यादा लेने वाले नशों का ज्यादा फैशन हो रहा हैं ,जैसे हीरोइन,कोकेन।और भी कई रासायनिक नशे भी करते हैं लोग जो आदमी को धीरे धीरे हरेक प्रकार से निक्कम्मा बना देता हैं।कईं मानसिक और शारीरिक बीमारियां देता हैं और अंत में जान ही ले लेता हैं।
अगर कोई समझे तो तो उससे दूर रह सकते हैं,ऐसे मित्रों से दूरी जरूरी बन जाती हैं,ऐसी दोस्ती का मतलब ही क्या हुआ जो बर्बादी के रास्ते ले कर जाएं।ये सामाजिक बदी हैं जो समाज को, खास कर युवाओं को कमजोर बना देती हैं।अगर समाज कमजोर हो तो देश तो अपने आप ही कमजोर बन जाता हैं।जो मेहनत कर देश को उन्नति के रास्ते ले जाने वाले हैं वही अगर नशे में धुत हो कही पड़े रहेंगे तो मेहनत कर देश के उद्योगों को आगे कौन ले जायेगा?
   जब कभी किसी से नशें में रहने वालों के बारे में बात करतें हैं तो जवाब मिलता हैं आजकल सभी तो कोई न कोई नशा करता ही हैं।अब जो सभी कर रहें वह सही हैं ये कैसे साबित हो सकता हैं।आपको भी वही करना हैं ये कहां तक वाजिब हैं।नशा करना एक मानसिक सपोर्ट हैं,बैसाखी हैं और क्यों चाहिए हमें ये बैसाखियां जब हम स्वस्थ हैं।
नशा करने वाले सच्चे जूठे बहाने तलाशते हैं किंतु ये बहनों के तहत किया गया नशा नुकसान तो करता हैं तो अपनी मानसिक और शारिरिक स्वास्थ्य का नुकसान करते तो हैं ही और सामाजिक प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा लेते हैं।कुछ भी कहो लेकिन समाज ऐसे लोगों की घृणा की दृष्टि से ही देखते हैं।इन सब के अलावा देश और समाज को  पिछड़ा बना देने में इन नशेड़ियों का बहुत बड़ा हाथ हैं।वैसे ही देश का युवा को कमजोर करने की चाल भी हो सकती हैं,दुश्मन देशों द्वारा।और ज्यादा प्रेरणाएं तो हीरो हेरोइंस देते हैं क्योंकि वही लोग उनके आइकॉन बन बैठे हैं।उनके जैसे बेढंग कपड़े पहनना,उनके की हावभाव की नकल कर बातें करना,उनके जैसे दिखने की कोशिश करना।जो ब्रांड के कपड़े वे लोग पहनते हैं या विज्ञापन करते हैं वो ही पहनना,तब तक तो ठीक हैं सब लेकिन नशा भी उनके ही ब्रांड या प्रकारका कर अपने जीवन को नर्क बनाते हैं हमारे बच्चे।
 हमारे भी देश और समाज के प्रति कुछ फर्ज बनता हैं जिससे हम उसकी प्रगति में बाधा न डालें अपने चारित्र्य को हनन होने से बचाएं।
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।