गीत/नवगीत

धोखे की तेरी चोट थी गहरी

धोखे की तेरी चोट थी गहरी

अकेलेपन से मेल हो गया।
खुद से खुद को प्रेम हो गया।
विश्वास घात की चोट से तुमरी,
जीवन अपना खेल हो गया।

तेरे बिन निःसंग हो गया।
लक्ष्य हमारा भंग हो गया।
पढ़ना लिखना भी है छूटा,
बिन पटरी की रेल हो गया।

प्रेमी से, मैं कौन हो गया।
वाचाल से, अब मौन हो गया।
तेरे बिन सब कुछ अब सूना,
आवास ही अपना जेल हो गया।

राह की अब मैं धूल हो गया।
गर्मी निकली, कूल हो गया।
धोखे की तेरी चोट थी गहरी,
पत्थर पिघला, तेल हो गया।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)