कविता

उम्मीद

जीवन की तमाम
असफलताएं जब
हौसलों को कुचलती हैं
तो फिर उसी कोने से
उठती हैं ये
कमबख्त उम्मीद।
सच है उम्मीद से
कुछ नही होता
पर घुप्प अंधेरे में
सुलगती हुई
बीड़ी हैं ये उम्मीद।
बाकमाल होती हैं
उम्मीद भी न टूटने
देती हैं न रुकने
हिमालय से लड़
जाने की हिम्मत हैं
ये बेबाक उम्मीद।
कभी जो हर तऱफ
उदासी हो मन मे
वीरानी सी खामोशी हो
तो सावन की बूंदें हैं
ये उम्मीद,जँहा गहरी सोच
मणिकर्णिका सी वही
जगमगाती
दशाश्वमेध घाट।
है ये रंगबिरंगी उम्मीद,
तो माना सिर्फ उमीदों से
कुछ नही होता
पर उम्मीद से
जिंदा हैं ये उम्मीद।

— डिम्पल राकेश तिवारी

डिम्पल राकेश तिवारी

वरिष्ठ गीतकार कवयित्री अवध यूनिवर्सिटी चौराहा,अयोध्या-उत्तर प्रदेश