कविता

जीवन की मूल प्रवृति

मनुष्य की जीवन
प्रवृति  प्रकृति और
परमात्मा की एक
बहुमल्य महान सौगात है।
जीवन की काल्पन्तमकता में
मनुष्य उलझता और
बिखरता जाता है।
क्षण भंगुर इस जीवन का
तनिक भी आभास नहीं
कर पाता है।
मनुष्य का जीवनत्व
स्वयं में परिपूर्ण होता है
जीवन इस तरह जिया
जाना चाहिए कि जीवन
स्वयं वरदान बन जाए।
मनुष्य का जीवन बाँस की
पोंगरी की तरह है।
जिससे बासुरी का
निर्माण होता है।
अर्थात् यदि जीवन में
स्वर और अंगुलियों को
साधने की कला आ जायेगी
तो उस दिन बाँस की
पोंगरी भी बाँसुरी बनकर
संगीत के सुमधुर संसार का
सृजन कर पाएगी ।

— सुंदरी अहिरवार

सुन्दरी अहिरवार 'तेजस्वनी'

भोपाल-मध्यप्रदेश