व्यंग्य – घुटना-छू ,संस्कृति छू
अतीत की बात हो गई ,जब लोग अपने से ज्ञान, गुण और आयु में बड़े, गुरुजन, माता -पिता , इष्ट देवता आदि के चरण स्पर्श किया करते थे।अब तो पैर छुआने की महत्वाकांक्षा रखने वाले लोगों -लुगाइयों की लिस्ट बहुत लंबी हो गई है। जैसे :नेता, अधिकारी, मंत्री आदि। बहू के द्वारा सास ,श्वसुर ,पति ,ननद आदि के पैर छूने की परम्परा भी रही। किन्तु ज्यों -ज्यों पैर – छुआने वालों की सूची ऊँची होती गई , छूने वालों के हाथ छोटे पड़ते गए। पहले दंडवत प्रणाम किया जाता था , किंतु डंडों की अति बढ़वार ने कुछ ऐसा जुल्म ढाया कि चरण- स्पर्श की ही अंतिम सीमा बन गई। अब दण्डवत प्रणाम इतिहास बनकर रह गया।उसके बाद चरण – स्पर्श का युग आया ,जो राजनेताओं की बाढ़ के कारण चरण – चुम्बन में बदल गया।
जब चरण छुआने वालों की सूची ऊँची होने लगी ,तो चरण -छुवइया क्या सीढ़ी लगाते चरण छूने के लिए? इसलिए वे मात्र घुटनों तक ही टिक कर रह गए।एक औपचारिकता का प्रदर्शनात्मक निर्वाह।उधर जब सब अपने -अपने अहं में सब तने हुए हुए हों तो कौन किसके पैर छुए ! इसलिए एक औपचारिकता पूरी कर लो औऱ अपना उल्लू सीधा करने की तजबीज कर डालो। जब घुटने पर घुटने छूते – छूते मात्र घुटन्ना तक ही सीमित हो गए,तो बेचारे घुटने भी घुटन के मारे कब तक बच पाते , वे पिराने लगे, घुटने लगे। उनमें दर्द होने लगे। अब आदमी ऊपर चढ़ते -चढ़ते जाँघों तक पहुँच गया है। निरंतर प्रगति हो रही है।अरे भाई ! घुटने ,जाँघें भी तो चरणों का ही हिस्सा हैं। कहीं भी छू डालो, स्पर्श -करंट वहाँ तक चला ही जाएगा , जहाँ तक उसे जाना चाहिए। सो सज्जनो ! औऱ देवियो!! अब घुटनों और जाँघों को आराध्य मानकर कर इससे ऊपर जाने की कोशिश भी मत करना ,अन्यथा आपके ऊपर इंडियन पैनल कोड की धाराएँ ही बहती नज़र आएंगीं।
जब चरण -स्पर्श की बात चली है ,तो ये जानना भी तो आवश्यक है कि अंततः ऐसा आचरण एक मानुष दूसरे मानुष के साथ क्यों करता है?युग -युग से करता आ रहा है। आज तो उसकी लकीर ही पीटी जा रही है ,जो पिटते-पिटते चरणों से जाँघों तक की यात्रा कर चुकी है।कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति में एक तेज होता है , जो उसके नेत्रों और चेहरे पर चमकता है। किंतु हमें यदि उससे उसके तेज का कुछ अंश चाहिए तो उसके चरण या पैर नहीं ,बल्कि उसके चरणों के नाखूनों के अग्रिम भाग का स्पर्श करना चाहिए। इससे चरण छूने वाले के हाथों के माध्यम से उस व्यक्ति के तेज का कुछ अंश उस चरण -स्पर्शक में चला जाता है। जो लोग इस बात को जानते हैं ,वे किसी से भी अपने चरण स्पर्श नहीं करवाते। अति महत्त्वाकांक्षी , दूसरों की दृष्टि में अपने को बड़ा दिखने का प्रदर्शन करने वाले , राजनेता , कुछ तथाकथित रिश्तेदार अपने चरण छुववा कर गौरव की अनुभूति करते हैं।जिन्हें अपना तेज किसी को नहीं देना ,वह कोई मूर्ख थोड़े ही है जो,ये काम करवाएगा !
अब आप ये भी न समझें कि आप अपने चरण छुआना चाहते हैं तो आप मूर्ख हैं। जी नहीं, मूर्ख नहीं, अति महत्वाकांक्षी तो निश्चित ही हैं।अब मेरी ये बात जानकर आप अपना निर्णय बदल लें या मेरी बात को मेरी अज्ञानता मानकर इस आँख से देखें औऱ उस आँख से बाहर कर दें, दाएं कान सुनें औऱ बाएँ से बाहर का रास्ता दिखा दें ,तो कोई क्या कर सकता है ; क्योंकि आज कोई भी किसी से कम ज्ञानी नहीं है। आज की नई युवा पीढ़ी तो कुछ आवश्यकता से भी अधिक ज्ञानी हो रही है ,जो किसी ज्ञानी, अनुभवी ,बड़े बुजुर्ग की बात मानने और सुनने को भी तैयार नहीं है। अब नहीं है ,तो नहीं है कोई क्या कर लेगा उनका। उनका अहंकार और गर्म खून का उबाल पुरानी पीढ़ी ,अपने माता -पिता , गुरुजन आदि सबको नकारता है। बस अपने को सही और सबको मूर्ख औऱ अज्ञानी मानता है।इसलिए पाँव छुआने के लालची घर -घर ,दर-दर, गाँव-गाँव, नगर – नगर बिना ढूँढ़े मिल ही जाएँगे। कोई ज्योति पुंज लेकर ढूँढने की भी आवश्यकता नहीं है।
‘घुटना – छू’ संस्कृति की बढ़वार ही आ गई है। छूने वालों की भी मजबूरी है कि वे किसी की महत्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए किसी के चरण बनाम घुटने बनाम जाँघें छुएँ।थोड़ा -सा झुके या बिना ही झुके झट से जाँघें छू लीं । जींस और टाइट पेंट धारी नई पीढ़ी झुके भी कैसे ? उनकी फ़टी हुई फैशनी जीन्स से उनके घुटने ही बाहर आ जाएँगे। वे टाइट ही इतनी हैं कि झुकने ही नहीं देतीं।ऐ चरण छूने वालो ! हाँ ,इतना ध्यान अवश्य रखना किसी नारी की जाँघें मत छूने लग जाना। पता नहीं क्या परिणाम हो। कहीं आपको ही विपरीत न पड़ जाए। इतना अवश्य है कि वर्तमान कालीन ‘घुटना- छू संस्कृति ‘ से संस्कृति ही (उड़न) छू होने लगी है।’नेता युग’ में ‘नेता- संस्कृति’ ही तो पनपेगी। जिसका पोषण नई पीढ़ी बाकायदा घुटने और जाँघें छू -छूकर कर रही है।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’