गीत/नवगीत

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में

प्रेम जगत का सार है

प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।
जीवन वही सफल कहलाता, जो बिखराता प्यार है।।

प्रेम से जीवन विकसित होता।
प्रेम बिना, भंवरों में गोता।
आनंद शिखर चढ़ पाता है नर,
प्रेम, प्रेम संग, प्रेम से सोता।

प्रेम हेतु संघर्ष जगत में, प्रेम सृजन आधार है।
प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

जिसको नहीं प्रेम मिल पाता।
निरर्थक सब हो रिश्ता-नाता।
जीवन नहीं वह जी पाता है,
मन का मीत नहीं जो पाता।

हर बाधा को पार वो करता, जिसको मिलता यार है।
प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

प्रेम ही देव, प्रेम ही गीता।
प्रेम ही राधा, प्रेम ही सीता।
विकार मुक्त नर हो जाता है,
प्रेम का सर्जक, प्रेम जो पीता।

प्रेम का अभाव नहीं जब होता, प्रेम से  बेड़ा पार है।
प्रेम व्याप्त जग के कण कण में, प्रेम जगत का सार है।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)