कभी कभी
ज़िन्दगी ऐसे दोराहे पर भी ले आती है
जहां किसी एक रास्ते
को चुनना मुश्किल हो जाता है
कभी खुशियों और गमों में चुनना
कभी उम्मीद और नाउम्मीदी में चुनना
कभी सपनों और अपनों में चुनना
कभी आशा और निराशा में चुनना
कभी सुकून और तनाव में चुनना
कभी खुद को मिटा कर खुद का पाने में चुनना
कभी घर और बाहर में चुनना
कभी परिवार और खुद में चुनना
इस तरह जीवन में न जाने
कितने दोराहे आते हैं
जब कौन सा रास्ता चुने
कौन सा छोड़े ये तय कर पाना
मुश्किल हो जाता है
आखिर कौन सी राह चुनें
क्यों जीवन भर ये सवाल
ये चुनौतियाँ आज़माती रहती हैं ला दोराहे पर
आखिर क्या चुने क्या छोड़ें
किस रस्ते चलें किस रस्ते से कदम रोक लें
क्या हासिल करें क्या छोड़ दें।।
— मीनाक्षी सुकुमारन