लघुकथा

पश्चाताप

आज दिवाली के दिन अपने श्मशान से सूने घर आँगन को देख सीमा को अपने कर्म याद आ गए। नम आँखों से सोचने लगी कितनी अबोध थी बेटे की लालच में दो बेटियों को कोख में ही दफ़न दिया था। दो बेटियों की बलि चढ़ा दी तब जाकर बेटे का मुँह देखा था। पति और सास को बड़ी जिजीविषा थी वारसदार की पर बेटियाँ मेरा तो अंश थी इतनी निर्मम मैं कैसे हो गई की अपने ही पिंड की कातिल बन गई। और जिस बेटे को पाने के लिए जितने पत्थर उतने देव मानकर पूजा और मन्नतों के धागे बाँधते ईश्वर से जबरदस्ती माँगा वह बेटा तो कूलाँगार निकला। बड़े लाड़, प्यार और जतन से पाल-पोष कर बेटे को बड़ा किया, पढ़ा लिखाकर इंजीनियर बनाया और लखलूट खर्च करके शादी भी रचाई। पर पूरा साल भर भी नहीं बीता की बहू के कान भरने पर बेटे ने माँ-बाप को छोड़ अपनी अलग दुनिया बसा ली। सीमा ने बहुत हाथ पैर जोड़े पर बेटा बहू को लेकर चला गया। पतिदेव को खास फ़र्क नहीं पड़ा वह अपने काम में ही उलझे थे। पर आज सबसे बड़े त्योहार दिवाली पर सीमा को खाली घर काट रहा था। सबके घरों में बहू-बेटियों की चहल-पहल से रौनक लगी है, सबके आँगन बहू-बेटियाँ दीये जला रही थी, रंगोली सजा रही थी, तोरण बाँध रही थी। काश मैं भी मेरी बेटियों को पनपने का मौका देती, जन्म देती और जीने का हक देती तो आज मेरा भी घर आँगन बेटियों की हंसी और किलकारियों से गूँज रहा होता। तुलसी सी पावन बेटियों के साथ अन्याय करके कितना बड़ा पाप सर चढ़ा लिया। मैं खुद भी तो किसीकी बेटी हूँ, एक औरत होकर क्यूँ मैंने बेटे के मोह में अंधी होते बेटियों का गला घोंट दिया। शायद उसी पाप की सज़ा उपर वाले ने दी है जो आज दिवाली के दिन मेरा घर आँगन मरघट सा सूना महसूस हो रहा है। ईश्वर ऐसी दुर्बुद्धि किसीको न दें। बेटियों से ही संसार में रोनक और खुशहाली है, माँ-बाप की खुशियों का कारण बेटियाँ ही तो होती है, बेटी ही संसार रथ की सारथी है। इतने में पड़ोसी उमा जो सीमा की सहेली थी वह और उसकी पंद्रह साल की बेटी तानी दिवाली का शगुन देने आई, सूना आँगन देखकर तानी बोली आंटी जी आज दिवाली के दिन आपने दीये नहीं जलाए रंगोली नहीं सजाई? सीमा नम आँखों से इतना ही बोली बिटिया जिनका जीवन ही बेरंग और तमस भरा हो वह क्या दिवाली मनाएं। चल थोड़ी मदद कर दे कुछ दीये पश्चात के जलाकर ही रस्म निभा लूँ। और दोनों मुंडेर पर दो दीये अजन्मी बेटियों के नाम के जलाकर सीमा फूट-फूटकर रोने लगी। और तानी से लिपटकर बोली मेरी बेटी बनोगी? उमा ने पानी पिला कर सीमा को शांत करवाया। तानी ने कहा जी आंटी जी। सीमा ने उमा से कहा बहन एक हक मांगूँ तो दोगी? उमा ने कहा पूछो मत मांगो सीमा ने कहा तानी के कन्यादान का हक मुझे दोगी देखो मना मत करना इस अभागन के पास ओर तो कुछ नहीं बस यह अहसान पाकर जीवन सफ़ल हो जाएगा। उमा ने कहा ठीक है ईश्वर ने मुझे दो बेटियों का उपहार दिया है एक का कन्यादान तुम कर देना। सीमा उमा के पैर पड़ने लगी पर उमा ने सहेली को गले लगा लिया। तानी को एक हज़ार एक रुपये दिवाली के शगुन के तौर पर देकर सीमा ने ढ़ेरों आशिर्वाद दिए। और आसमान की तरफ़ हाथ जोड़ कर बोली हे ईश्वर अगले जन्म मेरी बेटियों को मेरी ही कोख से जन्म लेने का अधिकार देना इस जन्म के अधूरे अरमान पूरे करके पाप धो लूँगी।
— भावना ठाकर 

*भावना ठाकर

बेंगलोर