कविता – चलते चल जीवन भर
समय की प्रवाह संग चलना है
आगे ही हर दिन बढ़ना है
एक दिन ऐसा भी पल आयेगा
सफलता तेरी कदम चुमेगा
रूक जाना कायरता का दपर्ण है
चलना ही जीवन का सर्मपण है
काँटा भी गर पथ पर मिल जाये
हर विध्न बाधा को गले लगाना है
जो डर कर चुन लेता है किनारा
उसका जीवन अंधकार है सारा
वो इन्सां जग मे जीवन से हारा है
चलना बढ़ना ही जीवन प्यारा है
जीवन की अद्भूभूत हे ये कहानी
वक्त के साथ जीवन की है रवानी
खतरों से कभी ना घबराना है
मुसीबत से भी हमें हाथ मिलाना है
जलधारा के संग जो भी चलता है
सागर की लहरों से वो मिलता है
जीवन ज्ञान की इक सरिता है
जीवन ही सब सीख दिलाता है
आशा की इक दीपक जलाना है
जग से अंधकार को मिटाना है
दिन का प्रकाश हो या रात अंधेरा
चलना ही है जीवन की सवेरा
— उदय किशोर साह