मुक्तक/दोहा

हमने भी सीखा-24

 

मुक्तक

हमने चाहा था
दर्शन हो पवित्रता का भी
पर
सौंदर्य और पवित्रता का मिलन दुर्लभ है
ऐसा लोग कहते हैं.

मुक्त रहो
मुक्त रहने दो.

खामोशी बोलती है, तस्वीर भी बोलती है
सुनते आए हैं सदियों से हम
तेरा लब न खोलना इतना पुर असर है
कि न खामोशी बोलती है न तस्वीर.

तुम न आओ ये तुम्हारी इच्छा
तुम्हारी यादें को सहेजे रखें
इस पर किसी का अंकुश नहीं.

दुःखों से मुक्ति जो चाहो
मोह से मुक्त हो आनंद पाओ.

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244