ग़ज़ल : एक थूकजादे का बेबाक़ बयान
रोक सको तो रोको हम तो पत्थर फेंकेंगे
शीशा टूटे या सिर फूटे हम नहीं देखेंगे
रस्ता रुकता हो रुक जाये हमको क्या करना
जाजम वहीं बिछाकर हम तो चूतड़ टेकेंगे
सड़क किनारे फ़र्ज़ी कब्र बनायेंगे औ’ पटरी पर
चादर हरी बिछाकर उस पर मत्था टेकेंगे
रोटी सब्ज़ी में, सिर मुँह पर, पानी में, बिरयानी में
मौक़ा जहाँ मिलेगा हम तो वहीं पर थूकेंगे
हमारे मज़हब में जो कोई कमी निकालेगा
सिर को धड़ से जुदा करेंगे, चाकू घोंपेंगे
वह हर काम करेंगे जिससे दहशत फैलेगी
“अंजान” हमें टोकेगा तो उसको भी ठोकेंगे
— डॉ. विजय कुमार सिंघल “अंजान”
सामयिक व चर्चित विषय, सुन्दर सृजन!
हार्दिक धन्यवाद