सामाजिक

पुस्तकें हमारी मार्गदर्शिका

क्रिस्टोफर पाओलिनी ने कितनी अच्छी बात कही है- “किताबें मेरी दोस्त हैं, मेरी जीवनसाथी हैं। ये मुझे हंसाती हैं और रुलाती हैं और जीवन का अर्थ बताती हैं।”
वास्तव में यह पुस्तकें हमारे लिए सच्ची आर्गदर्शिका हैं।और यह जीवन भर हमारा मार्गदर्शन भी करती हैं। हमारे जीवन का कष्ट,बाधा,समस्या,आदि का समाधान मात्र और मात्र यह पुस्तकें ही करती है। हमारे लिए यही पुस्तकें अनुचित से उचित,असत्य से सत्य,दुराचार से सदाचार,आनीति से नीति और असुरता से देवत्व की ओर ले जाने का साधन बनती है। यही हमे जीवन का सही अर्थ बताती है।जीवन दर्शन से एकाकार कराती है।जीवन जीने के लिए साधन बताती है।
महात्मा गाँधी ने कहा था- “जो व्यक्ति पुस्तकें पढ़ता है जीवन मे कभी  भूखे नही मरता।” अर्थात पुस्तकें हमारे लिए जीवन में सुख शांति और समृद्धि का एक साधन भी है।
मार्टिन टुपर ने भी अच्छी बात कही-     “एक अच्छी किताब सबसे अच्छी दोस्त होती है, आज के लिए और हमेशा के लिए।”
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पुस्तकों के महत्व को कभी नकारा नही जा सकता।प्रत्येक युग में उसका महत्व रहेगा।और हमेशा मार्गदर्शक के रूप में हमे लाभ मिलता रहेगा।चाहे वह धार्मिकता की दृष्टि से हो या शैक्षिक या मनोरंजन की दृष्टि से हो। सभी मे उसका मार्गदर्शन मिलता रहेगा।और उसका सार्वकालिक महत्व भी है।पर कम्प्यूटर,इंटरनेट,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के चलते इसका महत्व थोड़ा कम हुआ है।पर इसके बिना मीडिया भी अधूरा है। इसीलिए “संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन” (यूनेस्को) ने लोगों की बढ़ती दूरियाँ को खत्म करने के लिए 23 अप्रैल को “विश्व पुस्तक दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। और यह दिवस पूरे विश्व के लिए खास दिवस बन गया और जन-मानस इसके उपयोगिता को समझने लगे।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578