कथा साहित्यकहानी

किसान तेरी कहानी। (जो सबके पेट भरता है वो, इस संसार में ऐसे मरता है।)

(मई का महीना है सुबह के करीब 10 बजे का समय है। तपते सूरज की गर्मी से थोड़ा बहुत राहत पाने के लिए किसान अपने सिर पर कपड़ा बांधे हुए है। किसान अपने छप्पर के घर में थोड़ा सिर को झुकाते हुए अंदर प्रवेश करता है।) (किसान की पत्नि चूल्हे पर खाना बना रही है। चूल्हे में लगी गीली लकड़ियां जल कम रही हैं और धुआं ज्यादा कर रही हैं। जिसके कारण पूरे घर में धुआं भरा हुआ है। किसान का 10-12 साल का बेटा तथा 16-17 साल की बेटी चूल्हे के पास ही बैठे कांदा से जली भुनी रोटी खा रहे हैं।)

किसान- (धुएं के कारण आंखों को मींडते हुए।) ‘‘तेरा 10 बजे तक खाना ही नहीं बना? पता नहीं क्या छंगन-मंगन करती रहती है। अरे किसान के घर में तो सुबह पांच बजे ही खाना बन जाना चाहिए। तभी कुछ खेत में जाकर काम कर सकता है। कौन से तुझे 72 प्रकार के व्यंजन बनाने हैं। दो आदमी की रोटी भी टाइम पे नहीं बना पाती। तू अपनी आदत को सुधार ले।’’(किसान की पत्नि कुछ नहीं बोलती वो तो चूल्हे में लगी गीली लकड़ियों को फूंक मार-मार कर जलाने की कोषिश कर रही है। किसान चूल्हे तक पहुंचता है और अपनी जेब में हाथ डालकर कुछ पैसे निकालते हुए) ‘‘ले इन पैसों को रख ले। खेत की बुआई के लिए लाया हूं, 10 के सूद पर। (किसान की पत्नि हाथ बढ़ाकर पैसे थामती है और अपनी धोती के पल्लू में बांध लेती है।)

किसान- (हाथ जोड़ते हुए) ‘‘ओ भाग्यवान! ये व्यंजन बाद में बना लेना। पहले पैसों को संभाल कर रख दे। तुझे क्या पता कितनी मुष्किल से लाया हूं। मैं हल लेकर जा रहा हूं। (अपने बैटे तथा बेटी की ओर इषारा करते हुए) तू इनको लेकर जल्दी आ जाना खेत में बहुत काम बाकी है। ये भी थोड़ा बहुत हाथ बटा देगें।’(किसान की पत्नि गर्दन को हिलाकर हां का इषारा करती है। किसान तेज कदमों से बाहर निकलता है और हल तथा बैलों को लेकर खेत की ओर दौड़ लगा देता है।)

(दो माह पश्चात्)

(किसान खेत में खड़ी धान की फसल को देखकर खुषी से झूम रहा है। उसकी पत्नि तथा बच्चे भी साथ में हैं। चारों खेत की मेड पर बैठे खुश हैं।) (अपनी पत्नि से) ‘‘देख इस बार भगवान ने कितनी अच्छी फसल दी है। कर्जा भी पट जायेगा और मुन्ना का किसी स्कूल में दाखिला भी करवा दूंगा। दो चार क्लास पढ़ लेगा तो हिसाब-किताब सीख जायेगा। (अपनी बेटी के सिर पर हाथ रखते हुए) ‘‘और अपनी उज्जू के लिए भी कुछ पैसा जमा कर लूंगा। दिन पे दिन बढ़ती ही जा रही हैं। इसके भी तो हाथ पीले करने हैं। (खड़ा होकर बैलों की पीठ पर हाथ फैरते हुए) ‘‘देखो तुम्हारी मेहनत रंग लायी है। तुम्हें भी खूब भर पेट चारा मिलेगा, जी भरके खाना। (बैल भी अपने शब्दों में हां का इषारा करते हैं और किसान के कठोर हाथ को प्यार से चाटते हुए। शायद ये कहने की कोषिश कर रहे हैं कि ये सब इन हाथों का कमाल है। बातों-बातों में ही आकाश में बिजली के गड़गड़ाने की आवाज आती है। तेज हवाओं के झौके आने लगे हैं ऐसा प्रतित हो रहा है कि घनघोर बारिश आने वाली है और कुछ ही मिनटों में बारिश आ गयी।)

किसान की पत्नि- (आसमान की ओर देखते हुए) ‘‘अब घर चलो। बादल चारों ओर से घिर रहा है। ऐसा लग रहा है सारी रात बरसेगा।

किसान- (किसान कंधे पर हल उठाकर) ‘‘तू ठीक कहती है। चलो। बूंद मोटी-मोटी आने लगीं। (किसान का बेटा बैलों की रस्सी पकड़कर चल देता है। पीछे-पीछे किसान उसकी पत्नि तथा बेटी चल देते हैं।) (रात के करीब 11-12 बजे का समय है। बिजली गड़गड़ा रही है ओर बारिश तेजी से बरश रही है। किसान चारपाई पर लेटा इधर-उधर पल्टी मार रहा है उसे नींद नहीं आ रही है। किसान धीरे से चारपाई से उठता है और टूटा सा घर का दरवाजा खोलता है, जो खुलते और बंद होते समय चूं-चूं की आवाज करता है। दरवाजे की आवाज से किसान की पत्नि तथा बेटी उज्जू की आंखें खुल जाती हैं जो एक ही चारपाई पर सो रही हैं।) (किसान दरवाजे के पीछे लटकी बड़ी सी पन्नी को सिर पर ओढ़ता है तथा हाथ में फावड़ा उठा कर चलने को होता है। किसान की पत्नि तेजी से चारपाई से उठते हुए।)

किसान की पत्नि- ‘‘कहां जा रहे हो ऐसी बारिश में? (उठकर किसान के पास तक पहुंचती है पीछे-पीछे उज्जू भी चली जाती है। किसान ठंड़ से कांप रहा है। किसान की पत्नि किसान का हाथ पकड़ते हुए।) ‘‘तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है। बैठो मैं तुम्हारे लिए थोड़ा पानी गर्म कर देती हूं। पी लेना थोड़ी शरीर में गर्मी आ जायेगी। (उज्जू भगोना उठाकर बाल्टी से थोड़ा पानी उसमें डालती है तथा गर्म करने के लिए चूल्हे पर रखती है और चूल्हे में लड़की लगाकर जलाने लगती है।)

उज्जू- (गर्म पानी का गिलास किसान की ओर बढ़ाते हुए) ‘‘लो पापा। (किसान हाथ बढ़ाकर पानी का गिलास पकड़ता है और चाय की तरहा पीने लगता है पानी पीने के बाद किसान चलने को होता है।)

किसान की पत्नि- “कहां जा रहे हो अब? सुबह ही जाकर देख लेना।“

किसान- (गुस्से में) “देख नहीं रही बाहर कैसी आग लग रही बारिश में। बंद होने का नाम ही नहीं ले रही है। उधर सारी फसल बर्बाद हो जायेगी। कर्ज में डूब जाउंगा मैं। तुम्हें क्या फिकर है। बस खा लिया और हाथ पौंछ लिये।“

किसान की पत्नि- (थोड़ा गुस्से में आंखों में आंसू भरते हुए) ‘‘फसल से ज्यादा हमें तुम्हारी जरूरत है। आग लग जाने दो फसल को, अपने खाने भर तो अनाज घर में पड़ा है। तुम्हें कुछ हो गया तो? हम कहीं के ना रहेंगे। (पास में खड़ी उज्जू के सिर पर हाथ रखते हुए। इस जवान बेटी की फिकर नहीं तुम्हें।

किसान- (गुस्से में) ‘‘फिकर है मुझे! सबकी फिकर है! तुम तो खेती को बेच कर भी खा लोगे मगर उनका क्या होगा जिनके खेती नहीं, वो भी तो मुझ पर निर्भर हैं। उन्हें कौन खाने को देगा।“ (बोलते हुए फावड़ा कंधे पर रखकर निकल जाता है। किसान की पत्नि तथा बेटी किसान को रोकने की कोषिश करती हैं।)

उज्जू- (अपनी मम्मी के पास खड़ी उज्जू आंखों में आंसू भरते हुए) ‘‘कुछ फिकर नहीं है तुम्हें। ना अपने परिवार की और ना अपनी। बस रात दिन खेती में लगे रहना है।“ (किसान की पत्नि उज्जू का हाथ पकड़कर चारपाई पर ले जाते हुए।)

किसान की पत्नि- ‘‘ऐसे नहीं बोलते पापा। चल तू सो जा।“ (दोनों चारपाई पर लेट जाती हैं।) (किसान खेत पर पहुँचकर सिर पर पन्नी ओढे। खेत में भरा पानी निकालने के लिए खेत की मेड को फावड़े से काट रहा है।) (कई दिन हो चुके हैं बारिश बंद होने का नाम नहीं ले रही है। किसान के बैल भी बारिश में भीग-भीग कर कांप रहे हैं। पेट भी अंदर को धंस गया है। शायद भर पेट चारा ना मिलने की वजह से।)

(किसान उसकी पत्नि, बेटी और बेटा भी अंदर अपने छप्पर के घर में बारिश के

बंद होने का इंतजार कर रहे हैं। किसान को चिंता सता रही है इतनी अच्छी फसल को बारिश बर्बाद ना कर दे। उसकी सारी मेहनत पर पानी ना फिर जाये। किसान की पत्नि भी सिर पकड़कर बैठी है। बेटा तथा बेटी कुछ टूटे-फूटे खिलौनों से अपना जी बहलाने की कोषिश कर रहे हैं।)

(छप्पर पर बूंद बंद होने का सा अहसास होता है। किसान उठकर तेज कदमों

से बाहर को दौड़ता है। घर के बाहर निकलकर देखता है। बारिश बंद हो चुकी है। बाहर बंधे बैलों की ओर जाता है। एक बैल खड़ा है तथा दूसरा नीचे बैठा कांप रहा है। शायद वो कई दिन से भूखा अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। किसान का साथ छोड़ने की तैयारी कर रहा है। किसान बैलों के पास पहुंचकर खड़े बैल पर हाथ फैरते हुए तथा बैठे हुए बैल को उठने के लिए इषारा करता है। बैल ने एक बार उठने की कोषिश की मगर उठ नहीं पाया वापस गिर पड़ा और आंखें बंद कर लीं। किसान उसके मुंह पर हाथ फैरने लगता है। मगर बैल कोई हरकत नहीं करता। करता भी कहां से वो तो किसान का साथ छोड़कर जा चुका है। किसान की आंखों से आंसू छलक पड़े। वो मरे हुए बैल के शरीर पर हाथ फैर रहा है और अपने आंसूओं को रोकने की कोषिश करते हुए। खुद को समझाने की कोषिश कर रहा है कि उसका बैल मरा नहीं वो भूखा है इसलिए आंख बंद करके पड़ा है। चारे की खूशबू सूंघते ही उठ जायेगा। दूसरे बैल की रस्सी खूंटे से खोलकर) ‘‘चल तू मेरे साथ चल खेत पे कुछ घास फूंस खा लेना। इसके लिए यहीं लेकर आ जायेंगे। बैल किसान के पीछे-पीछे चल देता है।’ (किसान अपनी पत्नि को बाहर से ही आवाज लगाता है।)

किसान- बारिश बंद हो गयी। मैं खेत पे जा रहा हूं। बैलों को लेकर, तू रोटी लेकर आ जाना। (अंदर से दबी सी आवाज आती है।) ‘‘ठीक है ले आउंगी।“ (किसान खेत पर पहुंचता है। चारों ओर को देखता है। पूरी फसल पानी में डूब कर गल गयी है। भूखा बैल घास फूंस ढूढनें की कोषिश कर रहा है मगर कहीं भी नजर नहीं आ रही है। फसल को देखकर किसान को सदमा सा हो गया है वो अपनी किस्मत पर आंसू बहा रहा है। इधर-उधर देख रहा है।)

किसान- (अपने बैल से) ‘‘अब तेरे और मेरे भूखे मरने के दिन आ गये। (फसल की ओर हाथ घूमाते हुए) ‘‘देख ले तेरी-मेरी मेहनत पर कैसा पानी फैरा है ऊपर वाले ने, किसान को ये दुनिया ही नहीं ऊपर वाला भी मारता है। अब मुझसे नहीं रहा जा रहा इस दुनिया मैं। (अपने बैल के गले में बंधी रस्सी खोलता है और अपने गले में बांध लेता है। बैल अपनी आंखों में आंसू लिये अपने मालिक को अपने शब्दों में समझाने की कोषिश कर रहा है। ये बताने की कोषिश कर रहा है कि किसान के बिना उसका भी कोई नहीं है। उसको भी चारा तभी मिलेगा जब किसान होगा। मगर किसान अब किसी की नहीं सुन रहा है। वो चारों ओर देखकर पास में खड़े एक पेड़ पर चढ़ जाता है और अपने गले में पड़ी रस्सी का दूसरा छोर पेड़ की शाखा में बांध देता है। बैल नीचे खड़ा आंसू बहा रहा है। मगर कुछ कर नहीं पा रहा है। किसान एक झटके में पेड़ से नीचे कूद जाता है और फांसी पर झूल जाता है। कुछ ही छड़ों में तड़पते हुए किसान का दम निकल जाता है।)

बैल- (नीचे खड़ा बैल पेड़ से लटके किसान के पैरों को चाट रहा है और ये कहने की कोषिश कर रहा है।) ‘‘ये तुमने क्या कर लिया मालिक? तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब मैं मालकिन और छोटे मालिक को क्या जवाब दूंगा। अब मुझे भी छोटे मालिक जिंदा नहीं छोड़ेंगे।“ (उधर रास्ते में किसान की पत्नि उसकी बेटी और उसका बेटा खाना लिये खेत की ओर बढ़ रहे हैं। किसान की पत्नि को कुछ अनहोनी का अनुभव सा हो रहा है। वो बहकते कदमों से खेत की ओर बढ़ती जा रही है।)

उज्जू- (अपनी मम्मी का हाथ पकड़ते हुए) ‘‘मम्मी क्या हो रहा है तुम्हें? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना?’’

किसान की पत्नि- (खेत की ओर बढ़ते हुए) ‘‘हां बेटी। तेरे पापा दिखायी नहीं दे रहे? बैल भी एक ही दिखायी दे रहा है। पता नहीं कहां चले गये होंगे?’’

लड़का- ‘‘दूसरे बैल को पानी पियाने गये होंगे। या दूसरा बैल किसी के खेत में चला गया होगा उसे पकड़ने गये होंगे।“ (किसान की पत्नि बेटी और बेटा खड़े हुए बैल की ओर बढ़ रहे हैं। बच्चा दौड़कर बैल के पास पहुंचता है। बैल के मुंह पर हाथ फैरते हुए तथा उसकी बहती आंखों को पौंछते हुए) ‘‘पापा कहां चले गये? तेरे साथी को पानी पिलाने गये हैं क्या? तू भी चला जाता? तुझे प्यास नहीं लग रही थी क्या?’’ (बैल अपनी आंखों को छलकाते हुए मुंह ऊपर करते हुए किसान के पैरों को चाटता है। बच्चे की नजर पेड़ पर लटके अपने पापा पर पड़ती है। वो चींख पड़ता है।) ‘‘ये क्या कर लिया तुमने पापा? (बैल को लात घूंसे मारते हुए) तूने क्यों नहीं रोका पापा को? तू क्या कर रहा था यहां? तूने क्यों नहीं रोका पापा को? (बैल चुपचाप खड़ा पिट रहा है जैसे वो ही अपने मालिक का हथियारा हो।) (किसान की पत्नि भी दूर से ही समझ चुकी है जो अन्होनी उसके दिमाग में चल रही थी वो सच हो गयी और जहां तक पहुंची है वहीं बेहोश होकर गिर पड़ती है और उसके हाथ में से किसान का खाना भी पानी में गिर जाता है।)

उज्जू- (अपनी मम्मी को संभालने की कोषिश करते हुए) ‘‘मम्मी! मम्मी क्या हो गया तुम्हें? तुमने तो पापा का खाना भी गिरा दिया। अब वो भूखे ही रहेंगे। (रोते हुए नीचे पड़ी अपनी को उठाने की कोषिश करती है और नींचे पानी में ही बैठ जाती है। रोते हुए अपने भाई को इषारा करते हुए) ‘‘जल्दी आओ भईया देखो ना मम्मी को क्या हो गया है?’’

(चुपचाप पिट रहा बैल भी अब खड़ा नहीं हो पा रहा है। वो भी आंख बंद करके गिर पड़ा है और कुछ ही देर में अपने मालिक के पास पहुंच गया है। किसान का बेटा अपनी मम्मी की ओर दौड़ता है और उसको उठाकर)

बच्चा- ‘‘तू चल, तू चल यहां से। मैं जिन्दगी में कभी खेती नहीं करूंगा। मैं किसान नहीं बनूंगा। मैं नेता बनूंगा या अभिनेता बनूंगा।’ (तीनों रोते हुए किसान की डेडबाड़ी को लेकर चल देते हैं। बैल वहीं पड़ा रह जाता है।)

बच्चा– (घर पहुँचकर दबी सी आवाज में अपनी मम्मी से) ‘‘मम्मी अब मैं कुछ काम ढूढ़ने जा रहा हूं।“

किसान की पत्नि- (अपनी आंखों को छलकाते हुए) ‘‘क्या काम ढूढ़ेगा? कहां काम ढूढ़ेगा?’’

बच्चा- ‘‘तू चिन्ता मत कर। मैं शाम तक घर आ जाउंगा।’(एक फटे से थैले में अपने एक जोड़ी पुराने से कपड़े डालता है और कंधे पर लटकाकर चल देता है। मां की आंखे जोर से बह निकलती हैं। बेटे को रोकने के लिए हाथ से इषारा करती है। बेटा चला जाता है।)

उज्जू- (आंखें छलकाते हुए) ‘‘मम्मी भईया कहां जा रहा है? मम्मी रोक लो ना भईया को, भईया चला गया तो मैं किसके साथ खेलूंगी?“

किसान की पत्नि- ‘‘जाने दे काम ढूढ़ने जा रहा है शाम को आ जायेगा। तेरा बाप तो चला गया। तुझे मेरे सिर पर छोड़कर। कहता था उज्जू के हाथ पीले करने हैं। अब तो सारा बोझ मेरे लाल पर ही आ गया।“ (बच्चा थैला कंधे पर लटकाये रास्ते में जा रहा है। उसने देखा एक बहुत सुन्दर सा टैंट लगा हुआ है। जिसमें बच्चे, आदमी, औरत खचाखच भरे हुए हैं। सबके हाथों में प्लेट हैं और उन प्लेटों में कई-कई प्रकार के व्यंजन भरे हैं। कोई खा रहा है। कोई गिरा रहा है, तो कोई भरी प्लेट को धीरे से कचरा डिब्बे में डाल दे रहा है। बच्चा तेज कदमों से टैन्ट की ओर बढ़ता है और टैन्ट के पास पहुंचकर अन्दर घुसने की सोचता है। टैन्ट के गेट पर बैठा आदमी)

आदमी- (बच्चे का हाथ पकड़कर डाटते हुए) ‘‘ए किधर जा रहा? चले आते हैं पता नहीं कहां से भिखारी। मां बाप ने पैदा करके छोड़ दिया जा बेटा भिख मांग।“ (बच्चे पर थप्पड़ तानते हुए) ‘‘दूंगा अभी एक घुमा के गाल पे।“

बच्चा- (आदमी का हाथ पकड़कर चिल्लाते हुए) ‘‘ए भिकारी नहीं हूं मैं। (टैन्ट में खा रहे सभी लोग चैंककर बच्चे की ओर दिखने लगते हैं।) ‘‘मैं किसान का बेटा हूं। (नीचे पड़ी प्लेट से मुट्ठीभर चावल उठाते हुए) ‘‘जो तुम्हें ये अनाज पैदा करके दे रहा है। जो तुम्हारे पेट के लिए रात दिन खेतों में अपने बैलों के साथ अपने बीवी बच्चों के साथ खून पसीना बहा रहा है। बारिश ज्यादा हो तो मर जाता है। ना हो तो मर जाता है। (टैन्ट में पड़े खाने की ओर इषारा करते हुए) ‘‘तुम क्या जानो इस अन्न की कीमत, तुमने तो ये पैसों से खरीदा है ना, अन्न पैदा किया होता तो जानते।“ (आंखों से आंसू छलकाते हुए) ‘‘एक बात कान खोलकर सुन लो। यदि किसान ने ये पैदा करना छोड़ दिया ना। तो किसी भी कीमत पर खरीद नहीं पाओगे। चाहे तुम कितने भी अमीर क्यों ना हो जाओ। किसान ही एक ऐसा इंसान है जो सबके पेट भरने की सोचता है। बाकी तो सब अपना पेट भरने में ही लगे हैं। (चिल्लाते हुए तथा जोर से रोते हुए सिर पकड़कर बैठ जाता है।)

धर्मवीर सिंह पाल

फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के नियमित सदस्य, हिन्दी उपन्यास "आतंक के विरुद्ध युद्ध" के लेखक, Touching Star Films दिल्ली में लेखक और गीतकार के रूप में कार्यरत,

One thought on “किसान तेरी कहानी। (जो सबके पेट भरता है वो, इस संसार में ऐसे मरता है।)

  • कथा मार्मिक है!
    आपसे निवेदन है कि अपने परिचय को हिन्दी में परिवर्तित कर लें।
    हिन्दी रचना के साथ अंग्रेजी में परिचय अच्छा नहीं लग रहा।
    सादर

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