कविता

उम्र की दहलीज

जन्म जब लेता है इन्सान
सबसे पाता है वो सम्मान
जब उम्र की दहलीज चढ़े
मन में पाप की ऐब   बढ़े

भटक जाता है वो मेहमान
नीच अधम बनता शैतान
गलत संगत से होता वास्ता
खो देता है जग से सब रिश्ता

नाकारात्मक सोंच का बनता माली
जीवन भर रोता बैठ कर वो   खाली
जीवन भर आगे जा कर पछताता
परिजन को भी अपने साथ रूलाता

किसी से ना होता है प्रेम व प्यार
भूल जाता है जगत का सहचार
भटक जाता है तन व      मन
जीवन में संग ना मिलता सज्जन

लक्ष्य से भटक जाता जब इन्सान
मंजिल से भटक जाता है नाम
कोई भी ना देता है सम्मान
अपनों में हो जाता है अनजान

ना कोई संगी ना कोई साथी
सब से हो जाता हाथापाई
सोंच जब गन्दा हो जाता है
कर्म नागवार हो जाता   है

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088