खुशियां हमारी खटकती ही रैहती थीं – दुनिया की नज़र में
अैसे बे रंग हुऐ हम नज़ारा ही बन गैये – दुनिया की नज़र में
जनून हमारा इक मिसाल था – जो समझ में नही आया दुनिया की
बिखर गैये रेज़ा रेज़ा हो कर – सरे बाज़ार दुनिया की नज़र में
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बे व़फाई उन की बन गैई थी – अेक दरदेसर हमारे लिये
पानी जैसे मिल जाता है मिटटी में – आता नही दुनिया की नज़र में
बुहत मैहंगी है मगर व़फा – आज मुहबत के बाज़ार नें
बेच कर भी खुद को – खरीदी जा नही सकती दुनिया की नज़र में
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तोडना नही चाहिये रिशतों को – चाहे यिह कितने भी तलख हों
पी नही सकते गंदा पानी – आग तो भुझाता है दुनिया की नज़र में
अेक दिल ही है हमारा – जो काम करता रैहता है रात दिन
इस लिये ज़रूरी है इसे खुश रखना – दुनिया की नज़र में
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व़क़त ने पलटा सुलघती राख को – और शरारा बना दिया हम को
यक़ीन नही आता हमें – दाग़ कैसे बन गैये हम दुनिया की नज़र में
तोड दिया हम ने भी भरम – और सहारा बन गैये अपने आप का
ज़ाहिर कर दिया हम ने भी व़जूद अपना – दुनिया की नज़र में
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धक देना हमारी लाश को – तुम अपने ही हाथों से –मदन–
ज़खम आप के दिये हुऐ – आने नही चाहियें दुनिया की नज़र में
मुसकराहट हमारी बुहत अछी है – सब कहा करते थे हम से
समझ में नही आता कियूं यिह – चुभने लगी दुनिया की नज़र में